मुझे याद है की मुझे पिछली लोहड़ी को अपने
एक मित्र के साथ पंजाब जाकर लोहड़ी में शामिल होने का मौका मिला था. तब से लोहड़ी की
जो याद मेरे मन में बस गयी थी वो आज फिर से ताजा हो गयी जब टीवी पर-“सुन्दर मुन्दरिए हो! तेरा कौन विचारा हो!”- गाना प्रसारित हुआ. सारी यादे चित्रपट की तरह आँखों के सामने से गुजरने
लगीं.
मुझे याद है की वह मकर संक्रांति के ठीक
एक दिन पहले की रात थी और दोस्त का सारा परिवार रात को घर के सामने जली आग के
आस-पास इकट्ठा था और उसमे पुरे गाँव के लोग भी शामिल थे. सभी बहुओं के नैयहर से
लोहड़ी आ चुकी थी और लोग अग्नि की पूजा करते हुए आग में तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के
की आहुति “तिलचौली” दी जा रही थी. पूजा
के बाद सबने अग्नि के चक्कर लगाये और फिर बुजुर्ग लोगों के पांव छूकर आशीर्वाद
लिया. फिर बुजुर्ग महिलाओं ने मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक
और रेवड़ियाँ सबमें बांटी. लोगों ने जो खुशियाँ मनाई और जो नाच-गाना किया कि देखते
ही बनता था. पंजाब का नाच-गाना तो वैसे ही सारे देश में प्रशिद्ध है, उसका कहना ही क्या. रात में अन्य खाने के साथ पंजाब की मशहूर ‘मक्के दी रोटी और सरसों दा साग’ का आनंद आया उसका
बखान ही नहीं हो सकता.
बच्चे भी दिन भर 'दुल्ला भट्टी वाला' कहानी को छंद
के रूप में गाकर, जिसकी इस वर्ष शादी हुई हो या उनके यहाँ
बच्चा पैदा हुआ हो, के यहाँ से लोहड़ी इकट्ठा करते हैं और रात
में एक-दुसरे-से अपने द्वारा इकट्ठा की गयी लोहड़ी से तुलना कर जो आनंद उठाते हैं
उसका मजा ही अलग है.
लोहड़ी पर हर विवाहिता पुत्रियों को उनकी
मां 'त्योहार' (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी,
फलादि) भेजती हैं और यदि घर में अधिक बहुएं हैं तो उनमें किसके घर
से ज्यादा और अच्छी त्योहारी आई, का भी मान होता है. वधु और नवजात बच्चे जिसकी पहली लोहड़ी हो को लोग
बधाई के साथ उपहार भी देते हैं.
क्या है लोहड़ी?
मकर संक्रांति से पहले वाली रात को
सूर्यास्त के बाद मनाया जाने वाला यह पर्व पंजाब प्रांत का पर्व है. लोहड़ी का
अर्थ हैः ल (लकड़ी)+ ओह(गोहा यानि सूखे उपले)+ ड़ी(रेवड़ी). दक्ष प्रजापति की
पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही लोहड़ी की अग्नि जलाई जाती है. यज्ञ के
समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें
दिखाई पड़ता है.
लोहड़ी का प्रसाद
लोहड़ी से 20-25 दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएं 'लोहड़ी' के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करने लगते हैं. एकत्र सामग्री से
चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है. मुहल्ले या गांव भर के
लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं. परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है.
रेवड़ी (और कहीं कहीं मक्की के भुने दाने) अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही
चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बांटी जाती हैं. घर लौटते समय 'लोहड़ी' में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में घर पर लाने की प्रथा भी है.
लोहड़ी के नाम पर पैसे मांगते हैं बच्चे
बच्चों में लोहड़ी के लिए काफी उत्साह होता
है. वे दो चार दिन पहले से बाजारों में दुकानदारों तथा पथिकों से 'मोहमाया' या महामाई (लोहड़ी का
ही दूसरा नाम) के पैसे मांगने लगते हैं और एकत्र हुए पैसे से लकड़ी एवं रेवड़ी
खरीदकर सामूहिक लोहड़ी में अपनी भागीदारी प्रयुक्त करते हैं. लोहड़ी पर पतंगे उड़ाने
का भी चलन है. बच्चे पहले से ही पतंग और मांजे खरीद कर तैयार रहते हैं.
लोहड़ी व्याहना
शरारती या चुहलबाज लड़के दूसरे मुहल्लों
में जाकर 'लोहड़ी' से जलती हुई लकड़ी उठाकर अपने मुहल्ले की लोहड़ी में डाल देते हैं. यह 'लोहड़ी व्याहना' कहलाता है. वह इसे एक तरह की प्रतियोगिता
समझते हैं और कई बार इस तरह करने पर छीना-झपटी और सर फुटौवल की भी नौबत आ जाती है.
लोहड़ी का त्योहार और दुल्ला भट्टी की
कहानी
लोहड़ी का त्यौहार हो और दुल्ला भट्टी की
कहानी हो ऐसा हो ही नहीं सकता. लोहड़ी का नाम से दुल्ला भट्टी की कहानी से अभिन्न
रूप से जुड़ गया है. लोहड़ी के सारे गानों में दुल्ला भट्टी जरूर होता है.
दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में
पंजाब में रहता था. वह डाकू था. उस समय संदल बार की जगह पर लड़कियों को गुलामी के
लिए बलपूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था जिसे दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत
लड़कियों को न सिर्फ मुक्त करवाया बल्कि उनकी शादी की सारी व्यवस्थाएं करते हुए
उनकी शादी हिन्दू लड़कों से करवाई. कहते हैं कि जल्दी-जल्दी में शादी की धूमधाम का
इंतजाम न हो सकने के कारण दुल्ले ने लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर डालकर ही
विदा किया था. भावार्थ यह है कि दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों के लिए पिता की
भूमिका निभाई थी.
लोहड़ी जैसे परंपरागत त्योहार सभी को
उत्साह व उमंग से भर देते हैं. इस त्योहार के माध्यम से समाज में आपसी मेल-मिलाप व
भाईचारा को बढ़ावा मिलता है. ऐसा लगता है कि पूरा पंजाब उमड़कर एक जगह आ गया हो.
लोहड़ी खुशहाली का संदेश लेकर आती है. नए साल का यह पहला त्योहार लोगों के दिलों को
खुशियों से भर देता है. पर्व की आग में दुश्मनी और नफरत सब जल जाते हैं.
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