भारत त्योहार एवं पर्वों का देश है. बचपन में
मुझे सिखाया गया था की कैसे त्यौहार हमें और हमारे समाज से जोड़ते हैं. माघ महीना चल
रहा है और लोग कपकपाती ठंड और कोहरे के कारण अलाव का सहारा ले रहे हैं. किसान भाइयों
के खेत कट चुके हैं और अनाज खलियानों तक पहुच चूका है. जानवरों के लिए हरे चारे का
भी इंतजाम हो चूका है. मीठे के रूप में गुड़ और जाड़े से राहत के लिए अलसी, तिल, बाजड़ा का सेवन शुरू हो चूका है.
अब लोग ईश्वर को अच्छी फसल के लिए धन्यवाद
देने और लोगों से मिलने-जुलने एवं ख़ुशी मनाने
लिए मेलों और पवित्र नदियों में स्नान के साथ धार्मिक स्थानों की तरफ रुख करने
लगे हैं. इसी परंपरा से जुड़ा त्यौहार मकर संक्रांति है जो पूरे भारतवर्ष में पारंपरिक
एवं भौगोलिक भिन्नता के कारण अलग-अलग नामों से अलग-अलग रीतियों से मनाया जाता है.
आप यदि ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे की देश
के विभिन्न भागों में तो लोग इस दिन कड़ाके की ठंड के बावजूद रात के अंधेरे में ही
नदियों में स्नान शुरू हो जाता हो जाता है. इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम, वाराणसी में गंगाघाट,
हरियाणा में कुरुक्षेत्र, राजस्थान में पुष्कर
और महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी में श्रद्धालु इस अवसर पर लाखों की संख्या
में एकत्रित होते हैं. इलाहाबाद में लगने वाला माघ मेला और कोलकाता में गंगासागर के
तट पर लगने वाला मेला महास्नान पर्व के कारण ही प्रसिद्ध है. अयोध्या में भी इस पर्व
की खूब धूम रहती है.
अगर नाम की बात करें तो लोग मकर संक्रांति
अथार्त ‘सूर्य की उत्तरायण गति’ को तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में ‘पोंगल’; कर्नाटक,
केरल में ‘संक्रान्ति’; हिमाचल, हरियाणा तथा पंजाब में ‘लोहड़ी’; उत्तर प्रदेश,
पच्छिम बंगाल, राजस्थान, बिहार में ‘मकर संक्रांति या खिचड़ी’; महाराष्ट्र में
हल्दी-कुमकुम पर्व और असम में ‘बिहू’ कहते हैं.
इस त्यौहार पर लोग पवित्र नदी-स्नान कर सूर्य
पूजा कर हुई फसल के लिए ईश्वर का धन्यवाद और अच्छी भावी फसल के लिए निवेदन करने के
साथ दान-पुण्य भी करते हैं. उत्पन्न हुए अन्न से प्रसाद बनाकर लोगों में बाटते हैं.इसीलिए
हम इसे फसलों का त्यौहार व किसानो का त्यौहार भी कह देते हैं. यह बात भी सही है कि
बसंत आवागमन के इस पर्व को शहरों की अपेक्षा ग्रामीण इलाकों में ज्यादा धूम-धाम से
मनाया जाता है.
बच्चों को इस पर्व पर बनने वाले तिल-गुड़ की
गजक, रेवड़ी, लड्डू गुड़धानी, लाई के लड्डू, मूंगफली
पट्टी से खासा प्यार होता है और वे इसी के लिए इस पर्व का इंतजार करते हैं. मुझे याद
है कि जब हम छोटे थे तब हम कैसे अपनी नानी
और दादी को पत्र लिखकर ये चीजे मागते थे.
इस पर्व के विषय में यदि शास्त्रों की बात
की जाय तो उनके अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण
को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है. मकर संक्रान्ति से पहले
रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है. किन्तु मकर संक्रान्ति
से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है. प्रकाश
अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है. इसीलिए सम्पूर्ण
भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट
की जाती है. कई जगह कृषि में पशुओं की महत्ता के चलते उनका भी पूजन कर उन्हें भोजन
खिलाया जाता है.
उत्तर प्रदेश की मकर संक्रांति
या खिचड़ी
मकर संक्रांति के दिन उत्तर प्रदेश में पवित्र
नदियों में स्नान को विशेष महत्व दिया जाता है. विशेषकर गंगा नदी में स्नान को इस दिन
सर्वोत्तम माना जाता है. इस दिन से माघ मेले की शुरुआत होती है. प्रातः काल गंगा में
स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और उसके बाद दिन में खिचड़ी का सेवन किया जाता
है. समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी
खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है. गोरखपुर में मकर संक्रांति को
विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी
नाम से जाता हैं. इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र,
कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है.
महाराष्ट्र का हल्दी-कुमकुम
पर्व
महाराष्ट्र में मकर संक्रांति को हल्दी-कुमकुम
पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सभी विवाहित मराठी स्त्रियां हल्दी कुमकुम
लेकर एक दूसरे के घर जाती हैं और तिलक कर सद्भावना का संदेश देती हैं. हल्दी कुमकुम
के साथ ही गुड़ और तिल के लड्डू भी बांटे जाते हैं. साथ में कहा जाता है, 'तिळगुळ घ्या अणे गोडगोड बोला'
यानी तिलगुड़ खाओ और मीठा-मीठा बोलो.
असम का बीहू
असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू
के नाम से मनाया जाता है. इस दिन असम के सभी किसान अपने खेतों की पूजा करते हैं. इस
दिन असम में कई सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं और विशेष रूप से बीहू नृत्य किया जाता
है.
पश्चिम बंगाल की मकर संक्रांति
पश्चिम बंगाल के गंगा सागर तट पर इस दिन बड़ी
संख्या में श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं और सूर्य देव को अर्घ्य देकर मकर राशि में उनके
प्रवेश और उत्तरायण का स्वागत करते हैं. इस दिन किसान अपनी फसलों की भी पूजा करते हैं.
यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है और लाखों की भीड़ यहाँ स्नान-दान के
लिए इकठ्ठा होती है. वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़
होती है. इसीलिए कहा जाता है-"सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार."
गुजरात में पतंगबाजी
गुजरात में मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव
की पूजा की जाती है. पूरे विश्व में सबसे प्रसिद्ध गुजरात की पतंगबाजी ही है. इस दिन
पूरे गुजरात और राजस्थान प्रांत का आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से सराबोर रहता है. हर कोई
पतंग के माध्यम से अपनी प्रार्थना अपने ईश के पास भेजता है.
हरियाणा और पंजाब की लोहड़ी
"सुन्दर मुन्दरिए हो! तेरा कौन विचारा
हो!"- पंजाब में मकर संक्रांति के ठीक एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता
है. इस दिन रात को आग के आस-पास पूरा परिवार इकट्ठा होता है. इस दिन अँधेरा होते ही
आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की
आहुति दी जाती है. इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है. इस अवसर पर लोग मूंगफली,
तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं.
नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है. इसके साथ मक्के की रोटी
और सरसों का साग का आनन्द भी उठाया जाता है. 'दुल्ला भट्टी वाला'
की कहानी को छंद रूप में गाते हुए इस दिन बच्चे पूरा दिन घरों से घूम-घूमकर
लोहड़ी इकट्ठा करते हैं और रात को उत्सव मनाते हैं.
तमिलनाडू में पोंगल
तमिल में पोंगल का अर्थ होता है दूध में चावल
उबालना. पोंगल चार दिन तक मनाया जाता है- प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल,
तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल.
इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे
दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है. पोंगल
मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में पोंगल बनाई जाती है. इसके
बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ा कर खीर को प्रसाद
के रूप में सभी ग्रहण करते हैं. इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया
जाता है. पोंगल पर्व से ही तमिलनाडु में नववर्ष का शुभारंभ हो जाता है. इस दिन तमिल
अपने घर को रंगोलियों, आम और केले के पत्तों से सजाते हैं और
सूर्य देव का पूजन करते हैं साथ ही सांडों-बैलों के साथ भागदौड़ कर उन्हें नियंत्रित
करने का जश्न भी मनाया जाता है. कई वर्षों पूर्व पोंगल पर्व कन्याओं द्वारा बहादुरी
दिखाने वाले युवकों से विवाह करने का पर्व भी हुआ करता था.
आंध्र प्रदेश की तेलुगु संस्कृति में पोंगल
पांच दिनों तक मनाया जाता है. तेलुगु संस्कृति में न सिर्फ खेतों की बल्कि गोधन की
भी पूजा की जाती है.
राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को
वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का
चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं.
इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय
सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है.
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