Tuesday 25 November 2014

क्यों न #जुगाडू को मिले #जुगाड़ बनाने की स्वतंत्रता?

आप आये दिन सड़को पर, मोहल्ले में,अखबारों में, टीवी पर जुगाड़ मशीने देखते रहते है और उसे देखकर उत्सुकता या कोतुहल प्रदर्शित करते है. इनकी संख्या निश्चित नहीं है और लगभग सभी लोग इससे परिचित हैं. इसके बाद भी इनकी स्थिति वैधानिक रूप से स्पष्ट नहीं है और न ही इनके निर्माण में कोई सरकारी सहयोग प्राप्त होता है. परन्तु इनके आने से कामगार एवं कृषि वर्ग के लोगो के कार्य काफी आसान हो गए हैं और इनसे कई लोगो को रोजगार भी मिल सका है. 


जुगाड़- #जुगाड़ से तात्पर्य उन वस्तुओं या औजारों से है जो आसानी से आसपास उपलब्ध सामानों का उपयोग करके किसी खास जरूरत को पूरा करने के लिए बनाया जाता है. यह सस्ता और लोगों की जरूरतों को पूरा करने वाला होने के कारण लोगों का प्रिय भी होता हैं.
कब बनाये जातें हैं जुगाड़- जुगाड़ तब बनाये जातें हैं जब उसके मानक उत्पाद काफी महंगे हों और वह गरीब लोंगों की पहुँच से दूर हो परन्तु उसकी जरूरत ज्यादा हों तो 'कामचलाऊ ढंग' से कुछ रीति लगाकर अपना काम निकालने के लिए जुगाड़ बनाये जाते हैं। यह एक विकास भी है और मजबूरी भी- जिसने आने वाले कल के लिए रास्ता बनाया है.
कहाँ होता है प्रयोग- जुगाड़ अधिकतर कृषि कार्यों और दूर-दराज के क्षेत्रों में परिवहन के लिए प्रयोग किये जा रहे हैं. इन्होंने कृषि उत्पादकता बढ़ाने और ऐसे क्षेत्रों में भी परिवहन को सरल बनाया है जहाँ अभी तक ढंग से सड़कें भी नहीं बन पायीं हैं. कृषि और परिवहन के अतिरिक्त भी जीवन से संबंधित कई और उत्पाद जुगाड़ से बनाये गए हैं जिससे गरीब लोगों के सपने भी साकार हुए हैं, क्योकि मानक उत्पाद उनके लिए सपने जैसा ही था.
क्या है समस्या- यह खेद का विषय है की  हमारे देश में ऐसे इनोवेशन के लिए सरकारी तौर पर कोई सहायता नहीं दी जाती जिससे कृषि कार्यों में और सुधार लाकर कृषकों के जीवन स्तर को बढ़ाया जा सके और न ही इन आविष्कारों को पेटेंट ही प्रदान किया जाता है जिससे इन यंत्रों को बृहद स्तर पर निर्मित किया जा सके और इसका लाभ अन्य किसान भाई भी उठा सकें।
हमारे पेटेंट कानून नए आविष्कारों को तो रजिस्टर करते हैं पर पुरानी मशीनों में सुधार करने को कोई प्रोत्साहन नहीं देते। साथ ही गरीब और कामगार लोगों की बात तो सुनते ही नहीं जबकि यही वर्ग मशीनों का प्रयोग करता है और उनमें कमियों को जानता है और इन कमियों को दूर करने के तरीके भी। जबकि अमरीका,चीन आदि देशों में ऐसे प्रयोगों को प्रोत्साहन दिया जाता है और उनके द्वारा सुझाए गए प्रस्तावों को स्वीकार करके पेटेंट प्रदान किया जाता है। यही कारण है कि वहां प्रति वर्ष सुधार की गई मशीनें प्रयोग में लाई जा रही हैं जिससे उत्पादन में वृद्धि और प्रयोग में आसानी होती है। हमारे पेटेंट कानूनों में तत्काल ऐसे संशोधनों की आवश्यकता है जो सुधारों को स्थान दे सकें।
विकल्प- हमारी सरकार ‘मेक इन इंडिया’ की बात कर रही है परन्तु अभी तक वह जुगाडू़ मशीनों को बनाने वालों को प्रोत्साहन देने के लिए कोई नीति बनाते नहीं दिख रही है । परन्तु जब तक घरेलु विधि से तैयार सुधारों और नवीन आविष्कारों को संरक्षरण नहीं मिलेगा तब तक ‘मेक इन इंडिया’ का सपना दिवास्वप्न मात्र होगा अतः इनके संरक्षण के लिए सरकारी प्रयास होने चाहिए। अगर सरकार चाहे तो ऐसे उत्पादों को इनोवेशन पेटेंट के नाम से #पेटेंट दे सकती है। अनुरूप नीति बनने से जुझारू लोगों की बौद्धिक संपदा को संरक्षण, आर्थिक लाभ के साथ-साथ नए अविष्कार के लिए प्रोत्साहन भी मिलेगा. पर यह भी ध्यान रखना होगा की इन्हें बनाने का अधिकार सूक्ष्म और मध्यम उद्योग के पास ही रहे और ये बृहद उद्योग के मकड़जाल में ना फसने पायें.
जुगाड़ से बनी चीजों का यदि  पेटी पेटेंट्स या इनोवेशन पेटेंट्स हो सका तो इससे छोटे घरेलू उद्योगों को काफी राहत मिलेगी। यानी की उनपर पेटेंट नियम का पूरी तरह से पालन करने का दबाव नहीं रहेगा. तब जापान, जर्मनी, चीन, अमेरिका सहित करीब 50 देशों की भांति भारत में भी यह उत्पादन वृद्धि का कारण बनेगा।

अब देखना है की सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाती है यदि सरकार ने जुगाड़ बिल या पेटी पेटेंट को लागू कर सकी तो उसके बाद देशी तरीकों से तैयार प्रोडक्ट की बिक्री में किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी और हो सकता है आने वाले दिनों में आपके पास भी कोई जुगाड़ उत्पाद हो और तब यह हैरानी वाली बात नहीं होनी। 

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