आज के खेत यंत्रीकृत, प्रौद्योगिकी संचालित हैं
और रिकॉर्ड पैदावार कर रहे हैं. लेकिन उत्पादन में यह वृद्धि एक बड़ी कीमत पर
हासिल हुई है हानिकारक रसायनों और कित्नासकों ने हमारे भोजन को विषाक्त बना दिया
है इसकी वजह से स्वास्थ्य जटिलताएं पैदा हो रही हैं। किसान कीटों को मारने के लिए और उत्पादन को
बढ़ाने के लिए कीटनाशकों का उपयोग करते हैं, इससे फसल में कीटनाशकों के अवशेष बरकरार रहते
हैं, जिससे भोजन
अस्वस्थ बन जाता है और कुछ मामलों में तो विषाक्त हो जाता है। यदि किसान पर्यावरण अनुकूल तरीके से जैविक खेती
करते तो कमखर्च में उनके द्वारा उगाए जाने वाले खाद्यान्न और
सब्जियां हानिकारक नहीं होंगे और उनमें बेहतर स्वाद भी होगा. उपज को बढ़ाने के लिए उर्वरकों और रसायनों का अत्यधिक
उपयोग मिट्टी के प्राकृतिक पोषक तत्वों को नष्ट करता है.
जैविक कृषि: सामान्यतया
जैविक खाद के प्रयोग से की जानेवाली खेती को जैविक खेती कहा जाता है. वृहत अर्थों
में जैविक खेती, खेती की वह विधि है जो जैविक खाद,
फसल च परिवर्तन तथा उन गैर-रासायनियक उपायों पर आधारित है, जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के साथ ही पर्यावरण को प्रदूषित
नहीं करती है. जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र,हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है. सन्
1990 के बाद से विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार काफी बढ़ा है.
जैविक खेती से होने वाले लाभ
1.
कृषकों की दृष्टि से लाभ: भूमि
की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि, सिंचाई अंतराल में वृद्धि, रासायनिक
खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी, फसलों की
उत्पादकता में वृद्धि होती है.
2.
मिट्टी की दृष्टि से लाभ: जैविक खाद से भूमि की
गुणवत्ता में सुधार, भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ना, पानी का वाष्पीकरण कम हो जाता
है.
3.
पर्यावरण की
दृष्टि से: भूमि के जल स्तर में वृद्धि; मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम
से होने वाले प्रदूषण में कमी; कचरे का उपयोग, खाद बनाने में,
होने से बीमारियों में कमी; फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि
होती है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्वास्थ्य की दृष्टी से जैविक उत्पाद की माँग
है.
आधुनिक समय में निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि की उर्वरा शक्ति का संरक्षण एवं मानव
स्वास्थ्य के लिए जैविक खेती की राह अत्यन्त लाभदायक है। मानव जीवन के सर्वांगीण
विकास के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि प्राकृतिक संसाधन प्रदूषित न हों, शुद्ध वातावरण रहे एवं पौषि्टक आहार मिलता
रहे, इसके लिये हमें जैविक
खेती की कृषि पद्धतियाँ को अपनाना होगा.
यंत्रीकरण कृषि: कृषि के प्रत्येक
कार्य को यंत्रो की मदद से करने को कृषि का यंत्रीकरण कहते हैं. इसका उद्देश मानव,
पशु और यांत्रिक/विद्युतीय उर्जा के विभिन्न स्त्रोतों का अनुकूलन और कुशल उपयोग
भूमि , श्रम, बीजों, उर्वरकों,कीटनाशकों और सिंचाई जल की उत्पादकता बढ़ना और
उपयुक्त प्रोद्योगिकी वाले उपकरणों को बढ़ावा देकर फार्म प्रचालनों की गुणवत्ता में
सुधार करना और ऐसा करके उत्पादन की लागत को कम करना तथा विभिन्न कृषि प्रचालनों से
जुड़ी नीरसता को कम करना है. सरकार तथा निजी क्षेत्र द्वारा किये गए संयुक्त
प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्षों से यंत्रीकरण के स्तर में लगातार वृद्धि हुई,
जिसे नीचे दी गयी तालिका से समझा जा सकता है.
अब खेत तैयार करने से लेकर फसल काटकर घर लाने तक की समस्त
प्रक्रिया यंत्रो से ही की जाती है. कृषि में बैलों का प्रयोग लगभग ख़त्म होने को हैं. ट्रेक्टर, हार्वेस्टर, रोटाबेटर, जीरोट्रिल
मशीनों ने कृषि के पैटर्न में बदलाव किया है तथा पानी पम्प ने पानी की उपलब्धता कर
कृषि में तकनीकी क्रांति ला दी है। आधुनिक घटते खेत के रकबे को देखते हुए बाजार
में कम हॉर्स पॉवर वाले ट्रेक्टर भी हैं जो छोटे और सीमांत किसानों की जरूरत के
अनुरूप हैं.
क्यों है यंत्रीकरण और जैविक
खेती की आवश्यकता: भारतीय कृषि में
कामगारों की संख्या और जोत के परिमाप में लगातार कमी आ रही है और साथ ही रासायनिक
खाद के प्रयोग से मिट्टी बंजर होती जा रही है. अब किसान के पास सामान्यता: 1 से 3 एकड़ जमीन ही है और वह
खेती क़र्ज़ लेके करता है. इस दशा में किसान की आवशयकता है की वो अपने संसाधन कम
खर्चो में और आसानी से जुटाये और जैविक खेती अपनाये. जैविक खेती में लगाने वाली
खाद वह खुद बना सकता है. दुग्ध पशुओं की संख्या में वृद्धि करने से किसानों को दूध
और गोबर दोनों प्राप्त हो सकेंगे एवं इसकी ब्रिकी से भी आय प्राप्त की जा सकेगी.
खेती के यंत्रीकरण द्वारा खेती आसानी से बिना विलम्ब के हो सकेगी और उसके लिए अधिक
कामगारों की आवस्यकता भी नहीं पड़ेगी.
जैविक खेती से
रासायनिक खेती से मानव में बढ़ते स्वास्थ्य समस्याओं जैसे- हार्ट-अटैक, त्वचा
संबंधी रोग, रक्तचाप, शुगर सहित अन्य घातक बीमारियों पर भी रोक
लग सकेगी और मृदा की उर्वरता में भी वृद्धि होगी. इसीको देखते हुए आज भारत के गांवों में जैविक खेती के प्रति दिलचस्पी लगातार बढती जा रही है.
अगर ये बढोतरी यों ही रही तो आने वाले दिनों में भारत विश्व स्तर पर जैविक खेती
में निश्चित तौर पर नए आयाम स्थापित करेगा और एक बार फिर से अपने खेतों में हरा
सोना पैदा करेगा. इसके अलावा समय से पहले उत्पादन की वजह से किसानों को सिंचाई के
लिए पानी की ज़रूरत काफ़ी कम हो जाएगी. रासायनिक खाद पर दी जाने वाली 40 हजार करोड़ रुपये की उर्वरकों सब्सिडी भी बचाई जा सकेगी. स्वास्थ्य और
उर्वरक सब्सिडी पर होंने वाले खर्च से निजात मिलने का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था
पर भी दिखाई देगा.
यंत्रीकरण विधि द्वारा जैविक खेती को बढ़ाने के लिए
सरकारी और गैर सरकारी प्रयास की भी जरूरत है जिससे जैविक उत्पाद को बाजार में
रासायनिक उत्पाद के मुकाबले अधिक दाम मिल सके और जैविक उत्पाद के नाम पर रासायनिक
उत्पाद न बिक सके. किसानों को जैविक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जाय और
उन्हें इसके लाभ बताए जाए.
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