यदि आप समाज के प्रति जागरूक हैं तो आपको अख़बार, टीवी के समाचार जरूर परेशान करते होंगें. मैं ऐसा कोई दिन नहीं पाता जिस दिन मैं बिना कोई दुखद समाचार सुने/देखे गुजार पाऊँ. हर दिन लूट-मार, हत्या, छिनेती, बलात्कार, अपरहण, आत्महत्या से समाचार भरे होते हैं, जिसे देख/सुन कर मैं सहज नहीं रह पाता और मेरा हृदय अशांत हो जाता है. मन करता है जी भर कर रो लूँ.
हालाँकि दिल्ली वालों के लिए रेप या बलात्कार कोई नया शब्द नहीं है फिर भी मैं आज तक ना तो बलात्कारी की मानसिकता को और ना ही यह की कोई कैसे कामना वश इतना नीचे गिर सकता है को समझ सका. आरोपीयों के भी अपना परिवार है, माँ हैं, बहन हैं, भाई हैं, कुछेक के तो पत्नी और बच्चे भी हैं और वह घर में सामान्य हैं. वह अपनी माँ, बहन, बच्चे को प्यार करते हैं फिर ऐसा क्या होता है या ऐसा कौन-सा कारण है जिससे विवश हो कर वह ऐसा घिनोना कार्य कर बैठते है और अपनी और अपने परिवार वालों के बारे में भी नहीं सोचते? दो साल, चार साल की बच्ची जिसकी एक मुस्कान आपके अन्दर प्रसन्नता भर देती है उसके साथ ऐसा पाशविक कृत्य कोई कैसे कर सकता है? ये भारत के लोगों और दिल्ली वालों तुम्हे हुआ क्या है?
मंगोलपुरी के सरकारी स्कूल में 7 साल की बच्ची से रेप; गांधीनगर में 5 साल की गुड़िया का दो लोगो द्वारा घर के बगल में रेप; 17 साल की बच्ची का तीन लोगों द्वारा कार में गैंगरेप, 27 साल की कामकाजी युवती का प्रीतमपुरा के मॉल के ऑफिस में गैंगरेप और अब उबर कैब में 25 साल की युवती का रेप. महिलाओं के लिए स्कूल, मुहल्ला, ऑफिस, परिवहन साधन, मॉल और कैब कुछ भी सुरक्षित नहीं है, वह घर में भी सुरक्षित हैं या नहीं यह भी एक बड़ा प्रश्न है. वह किसपर विश्वास करें और किस पर नहीं, उनके सामने यह भी बहुत कठिन प्रश्न है.
यदि हम विश्व के आंकड़ो पर नजर डाले तो पायेंगें की विश्व के तमाम देशों में भी रेप होते हैं और सबसे ज्यादा रेप दक्षिण अफ्रीका, यूएस, फ़्रांस में होते हैं. भारत के आंकड़ों में 2012 के बाद तेजी से वृद्धि हुई है.
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) की माने तो देशभर में औसतन हर रोज 92 रेप होते हैं जिसमें 4 दिल्ली में होते हैं. रेप की संख्या 2012 में 680, 2013 में 1559 तो 2014 के फरवरी तक 400 के लगभग हो चुकी थी. यह तो वह मामले हैं जो दर्ज हुए और उनकी संख्या इससे कहीं अधिक है जो दर्ज ही नहीं हुए. यह स्थिति समझ लेने पर हम वास्तविक संकट समझ पाएंगे.
यदि हम दिल्ली के रेप केस को आंकड़ों की नजर से देखे तो पाएंगे की निर्भया सामूहिक बलात्कार के बाद इनकी संख्या में कानून को सख्त करने के बावजूद वृद्धि हुई है और कई ऐसी भी घटनाएं हुई जिसने हमारे मन को झकझोर कर रख दिया और हम अन्दर तक सिहर गए.
अब एक कैब चालक द्वारा एक कामकाजी युवती से दुष्कर्म की घटना से दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर नए सिरे से चर्चा शुरू हो गई है. राजधानी में एक फोन कॉल अथवा संदेश पर कैब सेवा प्रदान करने वाली कैब की सेवा कितनी महफूज है यह सबके सामने है और यह भी की उसमें रखे जाने वाले ड्राईवर का वेरिफिकेशन किस स्तर का होता है (ऐसी खबरे आ रहीं हैं की ड्राईवर पहले भी रेप के आरोप में जेल जा चूका है). दुष्कर्म की इस घटना से यह भी साबित हो रहा है कि महिलाओं की सुरक्षा के तमाम सरकारी दावे बेमानी हैं और एक पुरुष जिस वक्त चाहे, जहां चाहे, जा सकता है, रह सकता है, लेकिन महिलाओं के लिए ऐसा करना आज भी सुरक्षित नहीं है. हम शायद आज भी मातृत्व गुण का सम्मान करना नहीं सिख सके हैं. यदि हम अपनी बहन-बेटियों की हिफाजत नहीं कर सकते तो दुनिया का हम पर यह शक करना लाजिमी है कि हम उनकी सुरक्षा भला कैसे करेंगे?
हालाँकि ऐसे घृणित कार्य करने वालों को रोकने के लिए तमाम तरह के विकल्प सुझाये गए हैं और आरोपियों पर कड़ी कारवाही भी की जा रही है परन्तु फिर भी रेप का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है. ऐसा घृणित कार्य करने वाले मेरी समझ में मानसिक रोगी हैं. जो रिश्तों की महत्ता को समझ नहीं सके हैं. हमें एक बार अपने समाजगत ढांचे के अन्दर झांकना होगा और सोचना होगा कहीं इस समस्या की मूल जड़ परिवारों के बीच बढ़ती दूरी और रिश्तों के बीच घटता लगाव तो नहीं है? यदि ऐसा है तो यह सरकार का, समाज का, हमारा, आपका दायित्व है की हम सब फिर से समाजगत ढांचे को मजबूत बनायें. नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब फिर से महिलाएं घर से बाहर जाने में डरेंगी और घर के अंदर कैद होने के लिए विवश होंगी.
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