मौके की तलाश कर रही विपक्ष को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने बैठे-बिठाये ही बडबोलेपन के कारण आपत्तिजनक बयान देकर शेर बनने का मौका दे दिया है और भूखा शेर ऐसा भड़का है की लगातार दो दिन से माफ़ी मागने के बाद भी शांत ही नहीं हो रहा है. जबकि प्रधानमंत्री ने खुद इस टिप्पणी की निंदा की और सभी मंत्रियों से ऐसे बयान से बचने की हिदायत के साथ संयम बरतने को कहा है साथ ही उन्होंने विपक्ष से अनुरोध किया है की निरंजन ज्योति अभी नई मंत्री हैं और उन्होंने मांफी भी मांग ली है, आप लोग उनसे बड़े हो अतः उन्हें मांफ कर दें और बहुमूल्य सदन की कार्यवाही को चलने दें. लेकिन फ़िलहाल सरकार को घेरने के इस मौके को विपक्ष आसानी से नहीं छोड़ना चाहती. यह पहली बार नहीं है इससे पहले भी बड़े-बड़े नेताओं द्वारा बचकानी और आपत्तिजनक बयान दिया गया है.
मैं साध्वी निरंजन का बचाव नहीं कर रहा परन्तु दुर्भाग्य से भारतीय राजनीति का जो चरित्र बन गया है वह दुर्भाग्यपूर्ण है. भड़काऊ मुद्दों को सियासी लाभ के लिए जरूरत से ज्यादा अहमियत देना और सदन ना चलने देना कहाँ तक वाजिब है। यह ठीक है कि निरंजन ज्योति ने जो कहा वह सिर्फ केंद्रीय मंत्री जैसे गरिमामय पद पर बैठे व्यक्ति से अनपेक्षित है, बल्कि किसी भी व्यक्ति के मुंह से वैसे शब्द निकलना अशोभनीय माना जाएगा, मगर यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि प्रधानमंत्री और पार्टी के स्तर पर भाजपा ने साध्वी की भाषा को पसंद नहीं किया है। खबर तो यह भी है कि भाजपा ने इस घटना के बाद अपने सभी सांसदों को दिशानिर्देश जारी किए हैं कि वे बोलते समय संयम रखें। उन्हें यह भी याद दिलाया गया है कि अब वे विपक्ष में नहीं, बल्कि सत्ता में हैं और इस कारण मीडिया समेत सभी पक्षों की उनकी हर कथनी और करनी पर नजर है। दरअसल, प्रधानमंत्री और भाजपा नेतृत्व को अपने नेताओं से इस मर्यादा का पालन अवश्य सुनिश्चित कराना चाहिए। विगत लोकसभा चुनाव में उन्हें जो भारी जनादेश मिला, उसकी मूल भावना की रक्षा के लिए ऐसा करना अनिवार्य है। 'अच्छे दिन' लाने के नरेंद्र मोदी के वादे पर देश के करोड़ों लोगों ने यकीन किया। विकास और खुशहाली की आशा में उन्होंने भाजपा को अप्रत्याशित समर्थन दिया। यह उम्मीद अभी भी बरकरार है, लेकिन यह कायम रहे, इसके लिए भाजपा नेतृत्व को पर्याप्त एहतियात बरतनी चाहिए। भड़काऊ बातें इस एजेंडे को गलत दिशा में ले जाएंगी। दरअसल, ऐसी बातें कही जाएं, तो विपक्ष को संसदीय कार्यवाही में व्यवधान डालने का मौका नहीं मिलेगा,जैसा नजारा हमने पिछले दो दिनों में देखा है।
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