Tuesday 16 December 2014

नशा करना न स्टाइल स्टेटमेंट, न ही कूल, यह सिर्फ है बरबादी का मंजर


दुनियाभर में सबसे ज्यादा युवा भारत में निवास करते हैं. युवाओं के बलबूते भारत 2020 तक दुनिया की आर्थिक महाशक्ति’ बनने का स्वप्न देख रहा है. मगर देश के युवाओं में जिस गति से विकास हो रहा है, उसी गति से बेरोजगारी और तनाव भी उनके बीच पैर पसार रहा है. युवाओं के बीच नशे के बढ़ते चलन के पीछे बदलती जीवनशैली, दोस्तों का साथ, परिवार का दबाव, मां-बाप के झगड़े, इंटरनेट पर घंटों समय बिताना, बेरोजगारी, हताशा, प्रेम-असफलता, गलाकाट प्रतिस्पर्धा और पारिवारिक कलह जैसे मामले हैं.दिल्ली, नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद और गाजियाबाद के कॉरपोरेट हाउसों में काम करने वाले 27% युवा किसी न किसी नशे की गिरफ्त में हैं. संयुक्त राष्ट्र की ‘वर्ल्ड  ड्रग्स रिपोर्ट 2011’ के मुताबिक दक्षिण एशिया में भारत ड्रग्स का सबसे बड़ा बाजार है, जहां 2001 से 2011 तक 1.4 अरब डॉलर के मादक पदार्थों का कारोबार हुआ. 

युवा

देश की जनसंख्या में 65% युवा हैं जिनकी उम्र 35 वर्ष से कम है और 1.5 अरब लोगों में से आधे देश की आबादी की उम्र 25 वर्ष से कम है इनमें 90 प्रतिशत युवा नशे का शिकार हैं किसी को भी यह आंकड़ा चौकाने वाला लग सकता है, मगर सच यहीं है.शुरुवात में शौखिया, फैशन के तौर पर देखा-देखी या दोस्तों के साथ नशा किया जाता है पर बाद में यह आदत बन जाती हैं. जिसको छुड़ा पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. इसके नशे में नशा लेनेवाला कई बार इतनी घिनौनी हरकत (बलात्कार, हत्या तक) कर जाता है की चेतना लौटने पर जब उसे उसका आभाष होता है तो वह आत्महत्या तक कर लेता है. पैसे की कमी होने पर पैसे के लिए महिला का चैन खीचना, बटुआ मारना, गाड़ी चोरी करना, गाड़ी के पहिए, बैटरी एवं घर से बाहर लगा पानी का मोटर खोल लेना इनकी आदत बन जाती है.

बच्चे

बच्चे भी फेविकोल, तरल इरेज़र, पेट्रोल की गंध और स्वाद से आकर्षित होकर बहुत कम उम्र में आयोडेक्स, वोलिनी जैसी दवाओं को सूंघकर इसका आनंद उठाते हैं. कुछ मामलों में इन्हें ब्रेड पर लगाकर खाने के भी उदहारण देखे गए हैं. मजाक-मजाक और जिज्ञासावश किये गए ये प्रयोग कब कोरेक्स, कोदेन, ऐल्प्राजोलम, अल्प्राक्स, कैनेबिस जैसे दवाओं को भी घेरे में ले लेते हैं, पता ही नहीं चलता.फिर स्कूल-कॉलेजों या पास-पड़ोस में गलत संगति के दोस्तों के साथ ही गुटखा, सिगरेट, शराब, गांजा, भांग, अफीम और धूम्रपान सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर जैसे घातक मादक दवाओं के सेवन की ओर अपने आप कदम बढ़ जाते हैं. पहले उन्हें मादक पदार्थ फ्री में उपलब्ध कराकर इसका लती बनाया जाता है और फिर लती बनने पर वे इसके लिए चोरी से लेकर अपराध तक करने को तैयार हो जाते है. नशे के लिए उपयोग में लाई जानी वाली सुइयाँ एच.आई.वी. का कारण भी बनती हैं जो अंततः एड्स का रूप धारण कर लेती है. कई बार तो बच्चे घर के ही सदस्यों से नशे की आदत सीखते हैं. उन्हें लगता है कि जो बड़े कर रहे हैं, वह ठीक है और फिर वे भी घर में ही चोरी आरंभ कर देते हैं.

महिलाएं  

आज 15 से 20 प्रतिशत भारतीय शराब पी रहे हैं. 20 साल पहले जहाँ 300 लोगों में से एक व्यक्ति शराब का सेवन करता था,वहीं आज 20 में से एक व्यक्ति शराबखोर है. परंतु महिलाओं में इस प्रवृत्ति का आना समस्या की गंभीरता दर्शाता है. पिछले दो दशकों में मद्यपान करने वाली महिलाओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. विशेष कर उच्च तथा उच्च मध्यम वर्ग की महिलाओं में यह एक फैशन के रूप में आरंभ होता है और अब क़रीब 40 प्रतिशत महिलाएँ इसकी गिरफ्त में आ चुकी हैं. इनमें से कुछ महिलाएँ खुलेआम तथा कुछ छिप-छिप कर शराब का सेवन करती हैं. महानगरों और बड़े शहरों की कामकाजी महिलाओं के छात्रावासों में यह बहुत ही आम होता जा रहा है.

ग्रामीण इलाके

देश के ग्रामीण इलाकों में गांजा, भांग, बीड़ी, कच्ची सुरती, ताड़ी और कच्ची शराब का सेवन सबसे ज्यादा किया जाता है. पांच रुपये से लेकर बीस रुपये तक में गांजे की एक पुड़िया और भांग के गोले हर चौराहे पर उपलब्ध होते हैं. शहरों की तुलना में ग्रामीण महिलाएं ज्यादा गुटका और बीड़ी  का सेवन करती हैं.

राज्यवार स्थिति 

दिल्ली, बंगलुरु, चेन्नई, मुंबई, कोलकाता, गुड़गांव, नोएडा, इंदौर, पंजाब और भोपाल जैसे शहरों में युवा इंजेक्शन से लेकर सिंथेटिक गोलियों का सेवन कर रहे हैं. पबों और पांच सितारा होटलों में भी विदेशी सिंथेटिक नशे का इस्तेमाल बढ़ रहा है. पंजाब नशे का सबसे बड़ा और संवेदनशील गढ़ है आज वहाँ राज्य का हर चौथा नौजवान किसी न किसी तरह के नशे की गिरफ्त में है. उत्तराखंड में 70%, हरियाणा में 63% लोग भांग और गांजा लेने के आदी हैं. कर्नाटक में 85% और आंध्र प्रदेश में 89% बच्चों में अल्कोहल की लत देखी गयी है. मिजोरम में 89% बच्चे इंजेक्शन के जरिए नशा करते हैं. फुटपाथों पर रहने वाली 73% लड़कियों में भी नशीले पदार्थों की लत पाई गयी है. राजधानी दिल्ली में 76.7 प्रतिशत आबादी तबांकू का सेवन करती है. उसमें 2.8प्रतिशत महिलाएं गुटखा-पान मसाला खाती हैं.

परिणाम  

जिनको देश की उन्नति में अपनी उर्जा लगानी थी वो आज अपनी अनमोल शारीरिक और मानसिक उर्जा नशाखोरी, चोरी, लूट-पाट और मर्डर जैसी सामाजिक कुरीतिओं में नष्ट कर रहे है. लाखों लोग नशे के कारण ठण्ड में सड़कों पर ही पड़े रहने, ड्राइविंग करने और ओवरडोज़ लेने से तथा एड्स, मुंह के केंसर, फेफड़े, लीवर और गुर्दे के ख़राब होने से प्रतिवर्ष मारे जाते हैं. कितना ही पैसा इनके स्वास्थ्य पर खर्च हो जाता है. 
पर विडम्बना यह है कि नशे और नशीले पदार्थो को रोकने के लिए कानून तो बना दिये गये लेकिन उन पर कोई ठोस अमल नहीं किया गया है. यहाँ तक की कई राज्य अपने यहाँ गुटकातम्बाकू आदि पर प्रतिबंधित लगा चुकें हैं मगर आज भी वहां धड़ल्ले से बिक रहा है और उनपर कोई कारवाई नहीं हो रही है. सरकार इस मामले पर सिर्फ खाना पूर्ति ही करती दिखाई पद रही है. नरेन्द्र मोदी जी ने भी ‘मन की बात’ में इससे छुटकारा पाने की इच्छा जताई है पर मैं उन्ही से पूंछना चाहूँगा की यदि वे वास्तव में इस पर रोक लगाना चाहते हैं तो क्यों नहीं नशे के उत्पाद निर्माण पर ही प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगा देते? जब उत्पादन ही नहीं होगा तो लोगों को नशा प्राप्त नहीं होगा इसी स्थिति में नशा अपने आप बंद हो जायेगा. पर ऐसा होता मुझे दिखता नहीं है अतः जैसा प्रधानमंत्री ने सभी मां-बाप से कहा कि नशे की लत बुरी है, बालक बुरा नहीं है अतः अपने बच्चों से भावनात्मक मामलों पर भी चर्चा करें. केवल उनकी परीक्षा, उनके मार्क्स आदि की ही चर्चा न करें. यदि बच्चे मां-बाप के साथ घुलेंगे तो दिल की बात सामने आयेगी. बच्चे अचानक नहीं बिगड़ते इसलिए लगातार उनके साथ रहें. जिससे वह 'थ्री डी' बुराइयों बुराईयों  (जीवन में) डार्कनेस (अंधेरा), डिस्ट्रक्शन (बर्बादी) तथा डिवास्टेशन (तबाही) से बच सकें हम भी अपने दोस्तों और सहयोगियों से नशे को न बोलने को कहें जिससे ‘ड्रग को ना’ कहने की एक मुहिम चालू हो सके. यदि यह मुहिम चालू हो गयी तो ड्रग्स मुक्त भारत का सपना साकार होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा.
 

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