Tuesday 9 December 2014

निर्धन का शोषक नहीं सहारा बने कानून

हर किसी का सपना होता है की वह आलीशान घर में रहे, अपने परिवार को सारी सुख-सुविधा दे. परन्तु किसी का यह सपना नहीं होता की वह भीख मांगे या यौन कर्म अपनाये. क्या आप जानते हो की भारत में भीख मांगनेयौन कर्म और आदिवासी समाज कुछ पेशों को अपराध करार देकर गरीबों को दंडित किया जाता है? जिससे अपराधियों का संजाल बढ़ता है?
 हम याद रखें की  कोई भी अपनी खुशी से न तो भीख मांगता है और न ही यौनकर्म के पेसे में आता है. ऐसा वह कितनी मजबूरी या कितनी विवशता में करते होंगे, एक बार सोचिये. एक बार उनकी जिंदगी में झांक कर देखिये और महसूस कीजिये की कैसी नारकीय और यातनापूर्ण जिंदगी जीने के लिए वह विवश हैं? ऐसे में कानून के सिकंजे में आने से उनकी मुसीबतें कितनी बढ़ जाती होंगी, हम कल्पना भी नहीं कर सकते. अगर समाज या सरकार उनके लिए फिक्रमंद है तो उनकी मजबूरी और विवशता को दूर करे. आदिवासी समाज को उनके असंगत पेसे की हानियों के बारे अवगत कराये और उनमें शिक्षा के स्टार को बढ़ाये. 
इसके अतिरिक्त भीख मांगनेयौन कर्म और आदिवासी समाज के कुछ पेशों को आपराधिक कृत्य से अलग करने के लिए कानून को नए सिरे से बनाने की प्रक्रिया शुरू करने की जरूरत है। यौन हिंसा के खिलाफ महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर कभी-कभी मुझे लगता है की उनकी आजादी पर रोक लगाकर उनकी शारीरिक सुरक्षा के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है इस पर एक बहस की जाय और कानून को  गरीब और वंचित तबके का अपराधीकरण करने से बचाया जाये.

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