Thursday 29 January 2015

दिल्ली चुनावी दंगल: कॉप बनाम मफलरमैन

दिल्ली में एक बार फिर चुनावी दंगल की शुरुवात हो चुकी है. कई उम्मीदवार अपने हाथ पर विश्वास कर रहे हैं तो कई झाड़ू से सफाई करने की फिराक में हैं और कुछ तो चमत्कारिक ढंग से कीचड़ के तालाब में कमल खिलाने का दंभ भर रहे हैं. भाजपा की किरण जहाँ बेदी बन गयी हैं वहीँ कांग्रेस अजयमय बन रही है पर आप भी इस सर्द में बचने के लिए मफलर बाँध कर आई है. कभी बडबोले भगवे साधुओं द्वारा ‘हरामजादे’ की ओंस पड़ती है तो कभी धर्मान्तरण की बरसात हो जाती है. झाड़ू के बल खड़े लोग कचड़े में पड़े सबूत ढूंढ लाते हैं और जनता से मांग करते हैं की खूब खाओ-पीयों मौज मनाओ बस  कमायत के दिन हमें याद रखना तो बेड़ा पार हो जायेगा.


कभी टीवी पर आमने-सामने की संवादी जंग की चुनौती दी जाती है तो कभी डिनर खाकर पैसा देने के बजाय ले-लेने पर कटाक्ष होता है. लोगों को डिनर इतना अच्छा लगता है की इसके लिए विदेश जाने से भी गुरेज नहीं है- बस पेट भरना चाहिए क्योंकि- ‘पेट न होता तो भेंट न होता’ का जुमला जगत प्रसिद्ध है. झुग्गी नियमित होकर पक्के मकान में तब्दील होंगें, सबको आवासीय सुविधा मिलेगी, बिजली-पानी के दाम फिर से कम होंगे, डार्क एरिया ख़त्म होंगे, नारी सुरक्षा में पैबंद लगाये जायेंगे, फ्री वाईफाई सुविधा मिलेगी जैसे जुमले फिर से शुरू हो गए हैं साथ ही जनलोकपाल और स्वराज जैसे भूले-बिसरे गीत बहुत दूर बजते सुनाई पड रहे हैं. 

फिर से लोगों को सुशासन, संवैधानिक, मौलिक, भ्रष्टाचार  सरीखे भारी-भरकम शब्द सुनने को मिलने लगे हैं और मुर्ख जनता भी सोचती हैं की शायद यह भी कोई सुविधा है जो हमें मिलनी थी पर अब तक के नेताओं ने हमें मिलने नही दी है और यह भलमानुष अब हमें यह अमुक सुविधा दिलाएगा. उसे तो यह भी नहीं पता की नट कौन है और कौन है मदारी. 

जनता में यह प्रचारित होना भी शुरू हो गया है कि राजनीति अब दलदल नहीं रहा क्योंकि इसमें लोग IPS और IRS छोड़ कर आ रहे हैं पर हकीकत यह है की दोनों से जनता साधारण जीवन में बहुत डरती है. सब जानते हैं की एक जेल भेज देता है तो दूसरा चलता-चलाता व्यापार बंद करा देता है.


दिल्ली के चुनावी दंगल ने किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल को अच्छे और बुरे के नैतिक मकड़जाल में फांस लिया है. इस दंगल में किरण बेदी को अपने चयन का औचित्य सिद्ध करना है जबकि केजरीवाल को अपने आप को नए सिरे से साबित करना शुरू कर दिया है कि दिल्ली का राज्य उन्हें ही क्यों सौंपा जाए? उन्होंने भाजपा से मुकाबले के लिए राजनीति की नई शब्दावली एवं नारे भी गढ़ लिए हैं. इस युद्ध में कौन सफल होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि नैतिकता के मानदंडों पर कौन ऊंचाई पर खड़ा है.
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है राजधानी में विधानसभा चुनाव मुद्दे से हटकर हस्तियों की जंग में बदल रहा है. वैसे तो बिजली,सड़क, झुग्गियों की समस्या, महिला सुरक्षा कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनका हल लोगों को चाहिए. चुनाव में बेदी बनाम मफलरमैन चर्चा का अंदाजा इससे ही लग जाता है की कोई भी मंच दोनों प्रतिद्वंदियों के आरोप-प्रत्यारोप से नहीं चूकता. एक अपनी फोटो हटाने को कहता है तो दूसरा दुसरे को अवसरवादी घोषित कर देता है. फ़िलहाल दोनों के गुरु अन्ना जी अपने चेलों के साथ नहीं हैं.

 दूसरी तरफ मत प्रतिशत को बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग प्रयासरत हैं वही मत देने के लिए मन बना चुके मतदाता अपने क्षेत्र केप्रत्याशी की कुंडली को गूगल पर खंगाल रहे हैं और कुछ दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के हेल्पलाइन नंबर परप्रत्याशियों की प्रोफाइल, चुनाव आचार संहिता और मतदान केंद्रों से जुड़ी जानकारी ले रहे हैं. पार्टी अपने कार्यकर्ताओं के बल के साथ-साथ पीआर कंपनियों का संबल ले रहीं है. मेट्रो से लेकर सड़कों तक उमीदवारों के पोस्टर लग गए हैं. सोशल मीडिया पर भी ट्रेंड रोज बना रहता है. हर पार्टी अपनी जीत के सर्वे करवा रहीं है और जगह-जगह उन्होंने अनुमानित सीट ट्रेंड लगा रख्खा हैं ताकि उनके लोगों में जोश बना रहे. इसी बीच किरण के पास दो वोटर कार्ड होने और वोटरलिस्ट में 22% अवैध मतदाता होने की चर्चा भी जोरो पर है.


दिल्ली मतदाता भी शातिर हैं उनके दिमाग को पढ़ पाना टेढ़ी खीर है इसलिए वोटिंग बयार किधर बहेगी यह रुझान राजनीतिक पंडित भी नहीं बता पा रहे हैं. जनता भी कॉप बनाम मफलरमैन और IPS बनाम IRS में उलझ गयी है. मोदी बयार शायद रामलीला मैदान में ठण्ड के मारे  मंद पड़ गयी थी तभी उन्हें भाजपा में नयी किरण लाने की जरुरत हुई होगी दूसरी तरफ राजकुमार राहुल ने भी रोड शो का जलवा दिखाते हुए भाजपा पर हमले बोल दिए हैं. ओबामा की बिदाई के बाद प्रधानमंत्री खुद कमर कसकर पांच रैलियों में 31 जनवरी से 4 फरवरी तक जान फूकते दिखेंगे.


दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम जो भी हो, मगर आप के नेता केजरीवाल के लिए इस छवि केंद्रित लड़ाई में उस किरण बेदी को चुनौती देना कठिन होगा जिसकी छवि का जादू प्रशासनिक और सार्वजनिक जीवन में कई बार देखने को मिला है और अब मोदी भी उनके साथ है पर पार्टी उनके साथ है यह कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी.

दिल्ली में केजरीवाल पर पाना बीजेपी के लिए मुश्किल बनता जा रहा है. विजय अभियान में सहायक होने वाले चुनावी पोस्टर के जाल में बीजेपी खुद फसती जा रही है और सहानभूति केजरीवाल की तरफ खिसक रही है. कहीं अग्रवाल गोत्र चेत गया तो बिना बरसात ओले पद सकते हैं. फिर केजरीवाल ने भी मान लिया है कि 'PM फॉर मोदी और CM फॉर केजरीवाल'. वैसे तो ठण्ड ख़त्म होने की कगार पर है पर जाती हुई ठण्ड प्रायः लापरवाह लोगों को बीमार बना कर जाती है. इसीलिए केजरीवाल ने पहले से ही मफलर बांध रक्खा है पर कहीं बीजेपी इसकी चपेट में ना आ जाये. 

इस चुनाव में हाथ काम करता नहीं दिख रहा है पर झाड़ू कमल को बटोरने की फिराक में हैं. मकर संक्रांति तो बीत गई पर चुनावी खिचड़ी 7 फ़रवरी को चढ़ेगी और वह 10 फ़रवरी तक पक जाएगी. तब पता चलेगा की किस चावल में कितना दम था.

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