Sunday 7 June 2015

प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार हैं किसान

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आज देश में जो स्थिति बनी है वह किसी से छिपी नहीं है. देश में किसानों का बुरा हाल है. उनकी फसल पहले खेत में बेमौसमी बारिस की शिकार हुई बाद में मंडी में खुले में रखने के कारण और खरीद न होने से फिर से आई बारिश ने उन्हें तबाह कर दिया. आज भी किसान मंडी में जुटे हुए है पर रोज नए-नए बहाने उनके सामने रख दिए जा रहे हैं. किसान नेता उन्हें हड़ताल पर बुला रहे हैं पर किसान को समझ में नहीं आ रहा है की वह हड़ताल करें या आपने अनाज की फ़िक्र. खरीददारी न होने से उन्हें रोज-रोज मंडी के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. उन किसानों का हाल भी पूछने वाला कोई नहीं है जिन्होंने बंटाई पर, किराये के खेत पर खेती की थी. फ़सल उनकी ख़राब हुई है और मुआवजा भी उन्हें नहीं मिल रहा है. सरकार आश्वासन दे रही है और प्रशासन उनकी बातों पर गौर ही नहीं कर रही है. लेखपाल मौके का मुआयना किये बिना ही गिरावदारी की रिपोर्ट बना दे रहे हैं और लोगों को सौ-सौ, दो-दो सौ के चेक वितरित किये जा रहे हैं. यह घटना जले पर नमक छिड़कने से कम नहीं है.

हैरान, परेशान और खस्ता हाल किसान जहाँ पिछला बैंक लोन चुकाने की स्थिति में नहीं है उसपर भी उसे कुछ महीनों की मौहलत दी गयी है. बैंक बिना पिछला लोन चुकाए ऋण देने को तैयार नहीं है और सूद साहूकार मौके का फायदा उठाने के लिए तैयार बैठे हैं. किसान भी कहीं और से पैसा नहीं मिलते देख कर झक मारकर साहूकार के चंगुल में फ़सने के लिए मजबूर है. आज विकट स्थिति में जन-धन योजना का खाता खुलवाने का भी उसे कोई लाभ नहीं पहुँच रहा है.
भारी बारिश का सबसे बुरा असर उन गन्ना किसानों पर सबसे ज्यादा पड़ा है जिन्होंने इस साल गन्ना के साथ-साथ गेहूं की फसल बोई थी. चीनी मिलों ने गन्ने का पैसा नहीं दिया और जो गेहूं की फसल थी वो बुरी तरह खराब हो चुकी है. उन पर लाखों का कर्ज हो चूका है. उन पर दबाव बढ़ता जा रहा है. किसान कहते हैं बैंक वाले आते हैं, कर्ज़ मांगते हैं, उन्हें कर्ज़ नहीं वापस करेंगे तो ज़मीन वापस चली जाएगी. इसीलिए कई लोगों से मनमाने ब्याज के बाद भी पैसा उठाना पड़ता है.

ऐसी विषम परिस्थिति में भी सरकार कहती फिरती है कि कोई भी किसान फसल बर्बादी के कारण आत्महत्या नहीं करता क्योंकि किसान कमजोर नहीं होता. कोई उन्हें बता दो की किसान भी इसी मिट्टी में पले-बढ़े हैं उनकी भी सहनशक्ति होती है और जिसदिन वो जबाब दे जाती है वह भी हार मान लेते हैं. और आत्महत्या का दौर वही से शुरू हो जाता है.

ऐसा कहने वालों को चाहिए वह किसानों की फिक्र करें क्योंकि वो जो रोटी खाते हैं वह इन्ही किसानों की मेहरबानी से मिलती. वह जब बिसलेरी की बोतल का पानी पीते हुए एअरकंडीशन कमरों में बैठ कर  ऐसी बकवास भरी बाते करते हैं तब किसान खेतों में खुले आसमान के नीचे जेठ की दुपहरिया में काम कर रहा होता है. यह भी सच है की किसान को मेहनत कभी नहीं थकाती पर दिन-रात मेहनत कर पाली गई फसल की दुर्दसा उसे थका देती है. उसका कृषि से मोहभंग कर देती है और उसे कारखाने का मजदूर बना देती है.

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