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2014 के वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति गंभीर बनी हुई है. देश में पर्याप्त संसाधन होने के बावजूद कुपोषण खत्म नहीं हो रहा. इसमें गरीबी और अशिक्षा एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. हालांकि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में इंडिया ने अपनी रैंकिंग में सुधार किया है. अब यह 63वीं पायदान से खिसककर 53वें पायदान तक पहुँच गया है. भूख के खिलाफ जंग अभी भी भारत के सामने एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. बच्चों में कुपोषण और उनकी मृत्यु दर का स्तर चिंताजनक रूप से ऊंचा बना हुआ है.
वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में पांच साल से कम उम्र में बच्चों की मृत्यु, उनमें कुपोषण और कुल जनसंख्या में कुपोषण की संख्या को आंका जाता है और उसका विश्लेषण किया जाता है. एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि केवल पेट भरना पोषण नहीं है, पर्याप्त उर्जा भी मिलनी चाहिए.
Ø कुछ प्रमुख तथ्य...
- आबादी के छठे हिस्से को पर्याप्त पोषक पदार्थ नहीं मिल पाते.
- 19 करोड़ लोग भारत में रोज भूखे पेट रहने को मजबूर हैं.
- 30.7% बच्चे (5 साल से कम उम्र के) भारत में अंडरवेट हैं.
- 58% बच्चों की ग्रोथ इंडिया में 2 साल से कम उम्र में रुक जाती है.
- 4 में से हर एक बच्चा भारत में कुपोषण का शिकार है.
- 3,000 बच्चे इंडिया में कुपोषण से पैदा होने वाली बीमारियों के कारण रोज मरते हैं.
- 24% दुनियाभर में 5 साल से कम उम्र में मरने वाले बच्चों में भारत का हिस्सा.
- 30% नवजात शिशुओं की मौत भारत में होती है.
Ø भारत में भूख, कुपोषण की वजह
- 40% फल-सब्जियां और 20% अनाज खराब सप्लाई चेन के कारण बर्बाद हो जाता है और उपभोक्ता तक नहीं पहुंच पाता.
- बीपीएल परिवार खाने-पीने पर 70% रकम खर्च करते हैं.
- बीपीएल परिवारों की ओर से खाने-पीने पर खर्च होने वाली रकम 50% है.
- शहरी वर्किंग क्लास 30% खाने-पीने पर खर्च करता है.
- जीडीपी में खेती-बाड़ी का योगदान 2013 में 13.7% है.
- भारत में कृषि क्षेत्र में 50% फीसदी लोग कार्यरत हैं.
तीन अहम बिंदु
- जागरूकता जरूरी:- अक्सर माता पिता को यह पता ही नहीं होता कि उनके बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. अंधविश्वास के कारण वह इसे श्राप मानते रहते हैं और डॉक्टर की बजाए नीम हकीम से काम चलाते हैं. मध्यप्रदेश की स्थिति- कुपोषण के मामले में देश में मध्यप्रदेश की स्थिति बहुत खराब है. यहाँ कुपोषित बच्चों के लिए खास केंद्र बनाए गए हैं, जहां मां और बच्चों को समुचित आहार दिया जाता है.
- लापरवाही:- खरगोन में जन साहस नाम के गैर सरकारी संगठन के लिए काम करने वाली जासमीन खान बताती हैं कि अक्सर डॉक्टर इलाज के लिए मौजूद नहीं होते और मुश्किल में पड़े लोगों को मदद मिलने में देर हो जाती है.
- परिवार की मनाही:- गरीबी के कारण खेतों में दिहाड़ी मजदूरी करने वाली महिलाएं परेशानी में आ जाती हैं. वे जानती हैं कि उनका बच्चा बीमार है लेकिन अक्सर परिजन ही उन्हें सहायता केंद्र जाने से रोक देते हैं.
ऐसे में माएं मुस्किल में पड़ जाती हैं क्योंकि सहायता केंद्र में रहे तो मजदूरी जाती है और मजदूरी करे तो बच्ची बीमार. ऐसे कई परिवार हैं, जिन्हें सही जानकारी दिए जाने की जरूरत है.
Ø वैश्विक आंकड़े
अगर पूरी दुनिया की बात करें तो हालात पहले से कुछ अच्छे हुए हैं. 2014 में दुनिया भर में साढ़े अस्सी करोड़ ऐसे लोग हैं जिनके पास पर्याप्त खाना नहीं है. वहीं करीब दो अरब लोग कुपोषित हैं.
- दुनिया के बेहद गरीब लोगों का 64% हिस्सा सिर्फ 5 देशों में रहता है.
- 20,000 बच्चे दुनियाभर में भूख के कारण रोज मरते हैं.
- 80% लोग 10 डॉलर प्रतिदिन से कम पर गुजर-बसर करते हैं.
- दुनिया में हर नौ में से एक आदमी रोज भूखे पेट सोने को मजबूर.
- दुनिया के टॉप 85 अमीर लोगों की कुल संपत्ति 3.5 अरब सबसे गरीब लोगों यानी दुनिया की आधी आबादी की संपत्ति के बराबर.
- 80.5 करोड़ लोगों को दुनिया में भरपेट खाने को नहीं मिलता.
- हर साल एड्स, मलेरिया और टीबी से कुल जितने लोग मरते हैं, उससे ज्यादा लोगों को भूख निगल जाती है.
- 79.1 करोड़ ऐसे लोग विकासशील देशों में हैं, जिन्हें भरपेट खाना नहीं मिलता.
- 13.5% विकासशील देशों की आबादी का वह हिस्सा है, जो कुपोषण का शिकार है.
- 52.6 करोड़ लोग एशिया में आधा पेट खाने को मजबूर.
- 45% दुनिया में 5 साल से कम उम्र के बच्चों का हिस्सा है, जिसकी कुपोषण से मौत होती है.
- 20% पांच साल से पहले अंडरवेट बच्चों की मौत के मामले.
यह सही है कि दुनिया में भुखमरी का आंकड़ा कम हुआ है. मगर इराक जैसे देशों में अस्थिरता और युद्ध के कारण यह बढ़ा भी है. कोमोरोस, बुरुंडी और स्वाजीलैंड में भी भुखमरी बढ़ी है.
अगर भारत की स्थिति और अनाज उत्पादन का सूक्ष्म विश्लेषण करें तो स्पष्ट हो जाएगा की भारत में भुखमरी की स्थिति अंनाज संकट के कारण नहीं है. भारत में लगभग पर्याप्त मात्रा में अनाज का उत्पादन और भण्डारण है परन्तु राजनितिक इच्छा शक्ति की कमी और रसद विभाग के संघटक (राष्ट्रीय और प्रादेशिक) ईकाइयों की सकारात्मक पहल न होने के चलते यह स्थिति बनती है. विदित है की प्रत्येक वर्ष सम्पूर्ण देश में इन ईकाइयों में कितना अनाज उचित रख-रखाव न होने और कुछ लापरवाही के चलते बर्बाद हो जाता है और लोग भूखे मर रहे होते हैं. विगत सालों में न्यायलय ने भी इस पर प्रतिक्रिया करते हुए पूंछा था की क्यों खुले में रखा और ख़राब हो रहा अनाज गरीबों में नहीं बाट दिया जाता. पर जनाब हम उस देश में रह रहे हैं जहाँ के नेता हर मीटिंग में मोंटेक सिंह के ग़रीबी की रेखा के मानक के बराबर पानी गटक जाते हैं और देश का सबसे सुस्वादु और सस्ता भोजन संसद में करते हैं जहाँ गरीबों के लिए थालियाँ नहीं बनती और बाहर उस रेट पर किसी दुकान पर नहीं मिलती. गौरकाबिल है की माननीय जितने में छक कर खाते हैं उतने में बाहर फांका लगता है फिर कुपोषण बढ़ना ही है.
किसान बेचारे फ़सल बर्बाद होने पर आत्महत्या करते हैं और सरकार के लोग कहते हैं फ़सल बर्बादी पर कोई किसान आत्महत्या नहीं करता. कभी सर्वस्व लुटा कर देखिएगा तब पता चल जाएगा की क्या गुजरती है जब साल-छः महीने की कमाई एक झटके में लूट जाए और आगे सिर्फ़ कर्ज का बोझ बचा रहे. यह भी सत्य है की किसान कभी खुद की मुसीबत के कारण आत्महत्या नहीं करता पर देश का पेट भरने वाले के खुद के बच्चे आँख में आंसू लिए रात को भूखे पेट सो जाएं तो इसे वह कैसे सहन करे. यहीं वह टूट जाता है और फिर जो सिलसिला शुरू होता है वह देश के सामने हैं. कोई खेत पर, कोई एकांत में और कोई रैली में खुदखुशी कर लेता है. देश के नेता आपने स्वार्थ के लिए बिजली के खम्भे पर तो चढ़ जाते हैं पर किसान की खुदखुशी के वक्त पेड़ पर न चढ़कर पुलिस आने का इन्तजार करते हैं. आप किसान रैली को क्या संबोधित करोगे जब आप मात्र एक किसान को ढाढस न बंधा सके, उसे खुदखुशी करने से न रोक सके. काफी शर्मनाक है यह स्थिति. और ऐसी स्थिति में कुपोषण पर हमारी स्थिति सुधरी है तो इसमें किसानों और साक्षरता का गहरा हाथ है न की किसी राजनितिक पार्टी का.
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