Think About India
मनुष्य स्वाभाव नापसंद बातों को सदा झूठा मान लेना चाहता है, और इसके बाद इसके खिलाफ दलीले भी आसानी से तलाश लेता है. इस प्रकार वह जिसे नहीं मानना चाहता, उसे असत्य बताता है. वह दृश्य जगत के परिणामों का तर्कसंगत और ठोस दलीलों से खंडन करता है-यह भी सत्य है की वह दलीले भावनात्मक ज्यादा होती हैं- और जब उसका जबाब देने की कोशिश की जाती है तो वह पूरे हठ के साथ अपनी बात पर डटा रहता है....सोशल मिडिया पर भी कई बार ऐसी ही स्थिति से दो-चार होना पड़ जाता है....मैं जानता हूँ की रणभूमि छोड़ना शूरवीरों का काम नहीं पर मुर्ख के सामने हाथ जोड़ लेने में ही सार्थकता है.....
मनुष्य स्वाभाव नापसंद बातों को सदा झूठा मान लेना चाहता है, और इसके बाद इसके खिलाफ दलीले भी आसानी से तलाश लेता है. इस प्रकार वह जिसे नहीं मानना चाहता, उसे असत्य बताता है. वह दृश्य जगत के परिणामों का तर्कसंगत और ठोस दलीलों से खंडन करता है-यह भी सत्य है की वह दलीले भावनात्मक ज्यादा होती हैं- और जब उसका जबाब देने की कोशिश की जाती है तो वह पूरे हठ के साथ अपनी बात पर डटा रहता है....सोशल मिडिया पर भी कई बार ऐसी ही स्थिति से दो-चार होना पड़ जाता है....मैं जानता हूँ की रणभूमि छोड़ना शूरवीरों का काम नहीं पर मुर्ख के सामने हाथ जोड़ लेने में ही सार्थकता है.....
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