Sunday 19 July 2015

‪#‎शुन्यसेशुन्यतक‬

Think About India


शुन्य से चला था और आज भी देखता हूँ तो शुन्य ही पाता हूँ. न इतिहास समझ सका न साहित्य, न कला समझ सका न विज्ञान, न दुनियादारी समझ सका न इन्सान, न धर्म न मजहब, न प्यार न वासना....यह भी नहीं पता की जिस सड़क चल रहा हूँ उसपे कहाँ हूँ....माँ कहती है तुम क्या जानों माँ की ममता, बाप कहता है तुम क्या जानों चुप्पी वाला प्यार, बहन कहती है तुम क्या जानों बहन की डिमांड और लाड वाला लगाव ....प्रेमिका कहती है तुम क्या जानों लड़कियों के नखरे और पत्नी कहती हैं तुम क्या जानों मेरी सिधाई - मैं ही मिली हूँ जो तुम्हे झेल रहीं हूँ दूसरी होती तो कब की छोड़ चली होती.... अबोध था अनजान आज भी हूँ............आखिर मैं जनता क्या हूँ?


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