Tuesday 24 March 2015

गौरैया रानी क्यों हमसे रूठी हो ?

Think About India


ये गौरैया आज कहां चली जा रही हैं? हमारे आंगन, घरेलू बगीचे, रोशनदान, खपरैलों के कोनों को अचानक क्यों छोड़ रही हैं? ऐसा क्या हो गया है हमारे चारों ओर कि हमें पूरी दुनिया में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाने की जरूरत पड़ गई? हमें आज गौरैया बचाओ अभियान चलाने पड़ रहे हैं? इन सभी सवालों पर हम सभी को मंथन करने की जरूरत है. उन कारणों को खोजने की जरूरत है जिनके चलते आज हमारी सबसे प्रिय और पारिवारिक चिड़िया गौरैया हमसे दूर हो रही है. कहीं ऐसा न हो जाय की हम सोते रह जाये और गौरैया सिर्फ किताबों में पढ़ाया जाने वाला या संग्रहालय में रखी दर्शनीय पक्षी बन जाय और हम आने वाली पीढ़ी को गौरैया दिखाकर कहेंगे कि देखो बच्चों यही वो प्यारी गौरैया है जो पहले हमारे आंगन, बगीचे में फ़ुदकती थी.

आज हम प्रकृति के प्रति कितने निष्ठुर हो गए हैं और हमारे अंदर पलनेवाली संवेदनशीलता किस कदर तेजी से ख़त्म, होती जा रही है. हम आधुनिकता के लबादा ओढ़े कितनी चीजे खोने के साथ पारिस्थितिक तंत्र को बिगाड़ते जा रहे हैं यह हमें न तो दिखाई पड़ रहा है और न ही समझ में आ रहा है. गिद्ध गए .....पर अब हमारे बचपन की दोस्त गौरैया भी हमसे नाराज है और बिछुड़ने के कगार पर खड़ी हो गई है जो बचपन में मस्ती में फ़ुदकते हुए, चीं-चीं करते हुए हमारे आँगन में आकर बैठ जाती और दाना चुनकर मुंडेर के अपने घोसले में अपने बच्चों के पास चली जाती थी. वह घर के अंदर जहां तक भी पहुंच सकती है, वहीं अपना घोसला बना लेती थी. घरों के आंगन में, बाहर दरवाजे के पास अनाज सूखने के लिये फ़ैलाये जाते थे, महिलायें भी आंगन में अनाज फ़टकती थीं, इन्हीं में से गौरैया अपना आहार खोज कर अपना और अपने बच्चों का पेट भरती थी. दादी माँ और माँ उसके पानी पीने के लिए मिट्टी के कसोरे में पानी भर देती थीं और गौरैया का घर में आवागमन शुभ मानती थीं. दोपहर में जब अनाज साफ किया जाता तो घर की सभी महिलाएं गाना भी गाती थीं-

चिड़िया चुगे है दाना हो मोरे अंगनवा---मोरे अंगनवा----
कलसा पानी गरम है, चिड़िया नहावै धूर. चींटी लै अंडा चढ़ै, तौ बरसा भरपूर

कसोरे में रक्खे पानी में दिन भर गौरैया के झुण्ड के नहाने और पानी पीने का तमासा चलता रहता था. छोटे बच्चे जब चुपचाप कसोरे के पास जाते तो सारी गौरैया फ़ुर्र.....से उड़ जाया करती थी. हम लोग उसके अंडे और फिर बच्चे को देखने के लिए लालाइत रहते थे. जब कभी हम सिढ़ी से उसके घोंसले तक पहुँचने की कोशिस करते तो हमें दादी माँ और माँ तेजी से डाटती थी और उसके अण्डों को छूने से मना करती. क्योंकि उनकी धारणा थी की अगर गौरैया के अंडे को छू लिया जाता है तो गौरैया उस अंडे को सेती नहीं है. अब यह कितनी सही थी मैं आज तक नहीं पता. पर गौरैया पक्षी बच्चों की खास दोस्त  थी और गौरैया पक्षी का ही यह प्रेम था की मुन्नवर राना को भी यह कहना पड़ा

ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती-जुलती है,
कहीं भी शाख़े-गुल देखे तो झूला डाल देती है.

मुझे याद है एक बार तेज आंधी में आँगन के ऊपर आम की डाली से गौरैया का घोंसला गिर गया था और उसके अंडे फ़ुट गए थे उस दिन माँ ने खाना तक नहीं खाया था और बार-बार चीं-चीं करते हुए गौरया को देख कर हमसे उसके संतप्त मनोभावों की संवेदना तक को हमारे सामने मुखर कर दिया था. 


आज कहाँ ऐसी मनोभावना किसी पक्षी के लिए देखने को मिलती है. अब शहरों से तो गौरैया ने अपना बसेरा उठा ही लिया है पर अब गाँव में भी काफी कम दिखाती है. अब वह पहले की तरह निश्छल हो कर आँगन में चहकती नहीं मिलती. अब लोगों के घर कंक्रीट के हो गए हैं  और उनमें सीलिंग फैन,विंडो एसी, कूलर लग गए हैं जिससे इनके ज़ख्मी होने या कट जाने का ख़तरा बना रहता है; रोशनदान, खिड़कियों पर सुरक्षित जगह नहीं बची है. साथ ही वातावरण की आबोहवा,  हमारे भोजन और हमारी ज़मीन में कितना प्रदूषण फैल गया है. कीटनाशकों का पक्षियों पर क्या असर है,  इस बारे में हम ग्रामीण इलाक़ों में गिद्धों के खबरे पढ़ते थे परन्तु अब मोरों के मरने की ख़बरें पढ़ते हैं लेकिन गौरेया अभी भी  बड़ी ख़बर नहीं बन पाई है और न ही लोगों में इसे बचाने की पहल शुरू की है. 20मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाने की सार्थकता तभी होगी जब हम सभी इस प्यारी चिड़िया को फ़िर से अपने घर, आंगन और दरवाजे पर बुलाने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठायेंगे और अपने बचपन का वातावरण अपने बच्चों को विरासत में दे सकेंगे, जो खोता सा जा रहा है, यानी इस चिड़िया का हमारे घरों में आना-जाना, बसना, घोसला बनाना और हमारी दीवारों पर टंगें आईने में अपनी ही शक्ल देखकर चोंचे लड़ाना!


गौरैया को मनाने और अपने घर बुलाने के लिए जरुरी है की हम पेड़ों को काटने से बचाने में लग जाये और हरियाली को बढ़ाएं. अपने घर के अपने घर के आस-पास घने छायादार पेड़ लगायें ताकि गौरैया या अन्य पक्षी उस पर अपना घोसला बना सकें. सम्भव हो तो घर के आंगन या बरामदों में मिट्टी का कोई बर्तन रखकर उसमें रोज साफ पानी डालें. जिससे यह घरेलू पक्षी अपनी प्यास बुझा सके. वहीं पर थोड़ा अनाज  के दानें या बचे हुए खाद्य पदार्थ बिखेर दें. जिससे इसे आहार भी मिल सकेगा और यह आपके यहां रोज आने लगेगी. बरामदे या किसी पेड़ पर किसी पतली छड़ी या तार से आप इसके बैठने का अड्डा भी बना सकते हैं. यदि आपके घर में बहुत खुली जगह नहीं है तो आप गमलों में कुछ घने पौधे लगा सकते हैं जिन पर बैठ कर चिलचिलाती धूप या बारिश से इसे कुछ राहत मिलेगी. गमलों में लगे कुछ फ़ूलों के पौधे भी इसे आकर्षित करते हैं क्योंकि इन पर बैठने वाले कीट पतंगों से भी यह अपना पेट भरती है.




 

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