Monday 7 December 2015

तामीले-जमात नहीं पर कन्धों ढ़ोते देश-भार

Think About India



हे मौला ! 

कैसा स्वांग रच रहा तू 
कैसा जम्बुरा नाच नचाता तू 
कैसी कर दी देश कि हालत 
कैसे हो गए सब बासिन्दे 
कपड़े के सब ताने बिखरते
पहले देश एक मेला था 
रंग-रंग के थे सब फूल यहाँ 
दूसरे सीखने आते थे 
सादगी और सम्मान यहाँ 
विवेक, था विवेकी- जिसने दिया धर्म ज्ञान जहां 
कबीरा रकत-मुतर कहता मर गया, 
न काशी गया न काबा गया 
मक्का,मदीना, मंदिर, गुरद्वारा, चर्च 
सब यही रह जाएगा 
एक सच्ची मानवता, सिर्फ उसका नाम रह जाएगा 
मदर टेरेसा, नानक, सेंटा, क्या कम नाम है? 
सीखो उनसे जिसने खुद से सिखा हो
बाकी जगत बदनाम है 
प्रभु, ईसा, मूसा-सब हमने बनाये 
अब उसकी खातिर लड़ते हैं, मरते हैं 
कहाँ गयी तुम्हारी बुद्धि, कुछ समझ से भी काम लो 
जो मारे मानवता, वह भटका,दुश्मन
उसका कोई धर्म, ईमान नहीं 
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तामीले-जमात नहीं पर कन्धों ढ़ोते देश-भार 
पढ़-लिख सिद्ध, खंघालते सड़क-धूल फांक 
अज्ञान जीते ज्ञान से, मस्तक बढ़ता अभिमान 
साहित्कार, पत्रकार से ऊपर ईमानदार
इनका जम चूका प्राण, सड़क बिखरे लोथरे 
एक आमिर है, दूसरे कोई आजम या ओवेसी 
एक का अर्ध-सत्य बिकता बाजार में, 
दूसरे का सत्य कोई छापे नहीं अखबार में
राजनीति में कौन-कैसा? समझे कैसे कोई? 
जमीर मर गया अमीरों का, होता रोज हो-हल्ला 
किसान त्यागे प्राण हजारों खातिर,करोड़ों वाले को डकार नहीं 
देखो ईमानदारी तमगे, बेईमान से मिल रहे गले
दिखने वाला बिक रहा, आजमाइस के बाजार में 
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चलो-चलो जल्दी चलो, मातम हेतु भी वक्त कहाँ 
नाते-रिश्तेदारी तो छूट गयी, पर खुद से छुटना बाकी है
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