Think About India
सोचता हूँ !
कुछ कहूँ
आज नहीं, अभी नहीं
और
शायद ....
फिर कह भी पाउँ
बिन कहे अपने दिल की
कैसे रह पाउँगा?
.
.
.
.
कभी-कभी शब्दों की जरुरत नहीं होती
अनकही बयां हो जाती है
.
.
इसीलिए अंतर्मन को आवाज ना बना सका
अब ये खता थी या कमज़ोरी
एकांत में यह प्रश्न उभर ही आता है....
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