Saturday 21 March 2015

एकांत में ......

Think About India



सोचता हूँ !

 कुछ कहूँ 
आज नहीं, अभी नहीं 
और
शायद ....
फिर कह भी पाउँ 
बिन कहे अपने दिल की  
कैसे रह पाउँगा? 
.
.
.
.
कभी-कभी शब्दों की जरुरत नहीं होती 
अनकही बयां हो जाती है  
.
.
इसीलिए अंतर्मन को आवाज ना बना  सका
अब ये खता थी या कमज़ोरी



एकांत में यह प्रश्न उभर ही आता है....





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