मेरे घर के अगल- बगल वैसे तो कई घर है पर मैं सिर्फ चार घरों को लेकर अपनी बात रखने का प्रयास करता हूँ आशा है जो मैं कहना चाहता हूँ वह बात आप सभी तक पहुचेगी.
पहला घर
मेरे बगल में पहला घर एक नेता का है और मिया-बीबी दोनों दो पार्टियों के लीडर हैं. उनके एक बच्चा है पर संपत्ति अपार है. कई स्कूल हैं,कॉलेज हैं, कई प्लाट हैं, गेस्ट हाउस है और भी न जाने क्या क्या है.बच्चा हाई स्कूल में पहली बार फ़ैल हुआ दूसरी बार किसी तरह नक़ल कर पास हुआ..कमोबेश यही हाल इंटर में भी था. उसके बाद तो अपने ही स्कूल में उसकी पढाई हुई. विदेशी बाइक से एक बार एक्सीडेंट हुआ तो कई महीने तक अस्पताल में रहा. मार-पीट, दंगे-फ़साद में सबसे आगे पर अदब-कायदे में सबसे पीछे. आए दिन घर पर हंगामा खड़ा किये रहता है.शादी हो गयी पर आवारागर्दी नहीं गयी. दो बार व्यवसाय डाला दोनों बार बैठ गया. घर से लेकर स्कूल-कॉलेज, गेस्ट हाउस का काम नेता जी के भतीजे सँभालते हैं.
दूसरा घर


तीसरा घर
तीसरा घर वैसे तो एक एडवोकेट का है पर वह यहाँ रहते नहीं हैं और मकान भाड़े पर उठा हुआ है. उस घर में पुलिस महकमे के सर्किल ऑफिसर(CO) रहते हैं और उनका लड़का हमारे लड़के के साथ पढ़ता है. जहाँ तक मुझे जानकारी है वह सारे नशे करता है और एक बार उसके बैग से कॉलेज में शराब की बोतल पकड़ी गयी थी और उसके पैरेंट को बुलाया गया था. उसने कॉलेज अध्यापक को भी देख लेने की धमकी दी थी.

चौथा घर
चौथा घर वैसे तो एक और प्रोफेसर का ही है पर हम उनकी बात न कर उनके घर पर काम करने वाले परिवार की बात करेंगे.उस परिवार में दो बच्चे हैं जिनके बच्चों को न विशेष सुविधा हासिल है और ना ही उपयुक्त पढाई माहौल. ऊपर से घर के कई कामों में बच्चों को ही हाँथ बटाना पड़ता है. पर उन्होंने आर्थिक विषमता के बाद भी जो मुकाम हासिल किया वह सुख-सुविधा वाले लोगों से भी संभव ना हो सका. छोटा बेटा आज यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर है और बड़ी बेटी आईआईएम से एमबीए कर प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी कर रही है.
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फंडा यह है की धन की विपन्नता में बच्चे में चीजों को न पाने की जो कसक टीसती है उससे उनका जूनून और भी पक्का होता है. आज लोग पैसे के पीछे दिन-रात पड़े रहते है पर यह नहीं देख पाते की इस चक्कर में उनके परिवार अथार्त बच्चे किस दिशा में जा रहे हैं. सबने धन कमाने की कला तो सीख ली है पर बच्चे को अच्छा मनुष्य बनाने की कला न सीखा सके. पिता का कर्तव्य है कि वह अपनी संतान को पहली पंक्ति में बैठने योग्य बना दे. बाकी सब कुछ वह अपनी योग्यता के बूते हासिल कर लेगा. धन का आना-जाना सदैव लगा रहेगा पर एक बार जो संस्कार आरोपित हो गए वह जीवन भर साथ रहेंगे. इसीलिए बच्चों को सबसे पहले सद्गुण की तरफ बढ़ाना चाहिए.
याद रक्खे विषमता या आर्थिक तंगी कभी भी विकास में रूकावट नहीं है पर साधन सम्पन्नता हो सकती है...क्योंकि इसमें भटकाव ज्यादा हैं. अतः साधन सम्पन्न लोगों को बच्चों को मनुष्य बनाने के लिए विशेष सावधान और ज्यादा मेहनत करने की जरुरत है.
गर बात निकली है तो दूर तलक जानी चाहिए
अजय कुमार त्रिपाठी
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