Wednesday 21 January 2015

फोटो है...लाइक तो बनता है



 
लोग लाइक पाने के लिए अलग-अलग पोज, अलग-अलग जगह और अलग-अलग करतब करते हुए अपनी फोटो खींचकर सोशल नेटवर्किंग साइट पर महज लाइक पाने की लालशा से अपलोड करते हैं और लाइक  मिलने पर स्माइली फेस और डिसलाइक्स मिलने पर उदास फेस बना लेते हैं.  उनकी प्रसन्नता और उदासी महज एक क्लिक में छुप गयी है. लोग जल्दी सुबह और देर रात में अपनी फोटो पोस्ट करते हैं और आपसे उम्मीद करते हैं की आप उसे उसी वक्त लाइक करेंगें. साहबजी! यह फोटो और सेल्फी का दौर है जिसमें हम बहुत गहरे फंसते जा रहे हैं.


 अब वो दिन गए जब आप अच्छी फोटो खीचवाने के लिए लोग स्टूडियो भागे हुए जाते थे. वहीँ पर लगभग सभी लड़कियों की रिश्ते वाली फोटो तैयार होती थी. स्टूडियों वाला तरह-तरह के पोज दिखाता और बैकग्राउंड के लिए अलग-अलग किस्म की चद्दर डालता. दादा-दादी या नाना-नानी जब पेंशन के लिए इस स्टूडियों में अपनी फोटो खिंचाने जाते तो वह उन्हें बिना ग्लास के फ्रेम वाला चश्मा पहनाकर फोटो खींचता था. लोग फोटो खिचाने जाने से पहले तरह-तरह के कपड़े पहन कर देखते और सबसे अच्छी पोशाक में फोटो खिचाने जाते थे. स्टूडियों में जाने के बाद फिर से आपको स्टूडियों वाला सवारता था, दो लटें चेहरे पर लायी जाती थीं और हाथों की बिभिन्न मुद्राएँ लेकर लड़कियों की फ़ोटो खिंची जाती थी. इस दौरान फोटों खीचने वाला बार-बार मुंडी थोड़ा ऊपर या थोडा नीचे करने के साथ आपसे स्माइल करने के लिए कहता था और फिर तीन पर कैमरे का फ़्लैश आपके चेहरे पर डाल देता था. कैमरे के फ़्लैश से पता चल जाता था की फ़ोटो खींच ली गयी.
 

लेकिन अब जमाना बदल गया और सब फोटोग्राफर बन गए हैं. पल-पल की तस्वीरें उतारी जा रहीं हैं. अगर कोई फोटो खीचने वाला यार-दोस्त पास नहीं हैं तो सेल्फी तो बनती ही है. फोटो में अब पहले वाला बनाव-श्रृंगार भी नही है जिससे ऑरिजिनल लुक का चलन बढ़ गया है. सोते-जागते,खाते-पीते, उठते-बैठते, तन्हाई में-काम की अधिकता में हर वक्त फोटो खिंची जा रही है. कही घूमने जाना और किसी पर्व या फंक्शन में शामिल होने का मतलब ही फोटो खिंचवाना हो गया हैं. अब तस्वीरें बतातीं हैं की फला शख्स कहाँ है. लोग ताजमहल को उँगलियों से पकड़ रहे हैं, डूबते सूरज को हथेलियों में कैद कर रहे हैं. कोई हवा में उछल कर, कोई स्काई ड्राईविंग, तो कोई पानी के अंदर जाकर फोटो खिंचवा रहा है.

  
फोटो की मकसद अब केवल अपने फोन या कैमरे में सहेज कर अपने रिश्तेदारों या मित्रों को दिखाना भर नहीं रह गया है. संवाद के लिए उसे फेसबुक, टि्वटर या वॉट्सएप पर चढ़ाया जाना भी जरूरी हो गया है. इससे जहाँ उसकी लाइफ कम हुई  है वहीँ फोटो पर मिलने वाले लाइक और कमेंट ने उसकी सार्थकता और गुणवत्ता  को दोगुना कर दिया है. लोग लाइक पाने के लिए क्या-क्या नहीं कर रहे हैं? लोगो को टैग कर रहे हैं, पब्लिकली शेयर कर रहे हैं. इस ललक से पर्सनालिटी के साथ फोटो खिंचाने की ललक लोगों में बढ़ गयी है. कुछ लोग इसी चक्कर में सोशल कार्यक्रमों का हिस्सा बन रहे हैं. इसका ताजा उदहारण-स्वछता अभियान है. जिसमे लोगों ने हाथों में दस्ताने पहन-पहन कर झाड़ू लगाते हुए अपनी फोटो खिंचवाई. कई ऐसे लोग भी इसमें शामिल हो गए जो शायद ही कभी अपना कूड़ा उठाते हों. खास बात यह रही की उन्होंने कभी अकेले और चुपचाप ना तो झाड़ू पकड़ी और ना ही कूड़ा उठाया. कुछ खास लोगों का हुजूम उनके साथ बना रहा, ताकि फोटों में जन-समूह के साथ सहभागिता भी दिख सके.


फोटो का दूसरा रूप सेल्फी शब्द हर लोगों की जुबान पर ऐसा चढ़ा की ऑक्सफोर्ड को इसे वर्ड ऑफ द ईयर-2013’ का ख़िताब देना पड़ा.  आज के युवा बाहर की दुनिया से जुड़ने की बजाय अपना अधिकतर समय सोशल नेटवर्किंग साइट- फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सअप पर बिता रहे हैं. एकक्लिक और महंगे-महंगे अनेको फीचर वाले स्मार्टफ़ोन ने सब कुछ आसान बना दिया. लोगों में खुद की तस्वीरें खींच कर सोशल साइट्स पर पोस्ट करना, एक ट्रेंड बन गया है. आम आदमी से लेकर सेलिब्रिटी सब सेल्फी जैसे आदत में फंसते जा रहे हैं. अनुपम खेर और सेल्फी तो पुरे बॉलीवुड में मशहूर है. इसने भीड़ में अकेले खड़े शख्स को मुस्कराने की ऐसे माहौल में ताकत दी है जब झुंड में खड़े लोग मुंह फुलाए खड़े रहते हैं. 

सेल्फी की बड़ी बहन ग्रुफी के आने से इसका फ्रेम बढ़ गया है. अब एक के स्थान पर इसमें कई चेहरे ठूंस दिये जाते हैं और क्लिक होने से पहले मुस्कुराहट की तैयारी की जाती है. सब अपने को एकबार के लिए देखते हैं और क्लिक हो जाते हैं. ग्रुफी ने ग्रुप फोटो से एक के गायब होने का समाधान कर दिया है.


सेल्फी तब काफी चर्चा में आया जब किशोर किशोरियों के साथ की पोप की एक तस्वीर सोशल साइट्स पर खूब चर्चित हुई. यह तस्वीर खूब शेयर की गई और इस पर ढेर सारी टिप्पणियां मिलीं .इसके अलावा कई फंक्शन में सलेब्रटी की सेल्फी भी काफी पॉपुलर हुईं जिसमें से ऑस्कर 2014 में होस्ट एलेन डीजेनेरस द्वारा ली गई तस्वीर ने ट्विटर पर सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए. हॉलीवुड अभिनेता ब्रेडली कूपर द्वारा खींची गई सेल्फी को ट्विटर पर 26 लाख से ज्यादा बार रीट्वीट किया गया.

सोशल नेटवर्क साइट पर फोटो पोस्ट करना और फिर दोस्तों से लाइक पाना, इनाम पाने जैसा लगता है। यह स्वाभाविक है, जब हमें किसी काम के लिए इनाम मिलता है, हम वह काम बार-बार करते हैं. कुछ लोग इसी बात से संतुष्ट हो जाते हैं कि उनकी सेल्फी को लाइक्स मिले, जबकि बाकी इसी कोशिश में रहते हैं कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा लाइक मिलें और इसी चाहत में वे अलग-अलग पोज में फोटो पोस्ट करते चले जाते हैं.


आजकल लोगों पर सेल्फी लेने या फ़ोटो खिंचने और खिंचवाने का क्रेज इस कदर हावी हो चुका है,कि जहां मौका मिले वहीं क्लिक करने से नहीं चूकते. हालांकि इसमें बुराई वाली कोई बात नहीं,लेकिन किसी-किसी के लिए यह जानलेवा भी साबित हो रही है. हाल ही में केरल के पलक्कड जिले का एक बच्चा ट्रेन की छत पर चढ़कर सेल्फी लेते समय संतुलन खोकर खुली हुई इलेक्ट्रिक लाइन में जा गिरा.ऐसा ही एक और वाकया छत्तीसगढ़ की 22 वर्षीय लड़की का है जो सेल्फी लेते समय बाढ़ग्रस्त नदी में गिर गई. और भी ऐसे अनेक जगह हैं जहाँ फोटो या सेल्फी लेना खतरनाक साबित हो रहा है. ऎसे स्थानों में रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, सड़क के बीचों बीच, पहाड़ की चोटी पर चढ़कर झील में उतरकर, नाव या जहाज में बैठे हुए, डेम या फॉल पर चढ़कर ड्राईविंग करते हुए छत की रेलिंग आदि शामिल हैं.

फोटो और सेल्फी जरुरी हैं लेकिन किस कीमत पर दूसरों की नींद हराम कर या अपनी जान जोखिम में डाल कर यह फैसला तो अब आप को करना है. 



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