Thursday 22 January 2015

डेढ़ दशक में कितनी बदल गई जिंदगी


जिंदगी कैसे तेजी सी बदलती जाती है, इस बदलाव के दौरान कुछ लोग जुड़ते हैं और कुछ बिछुड़ जाते हैं. यह भी सच है की हमारा अतीत चाहे जैसा बिता हो पर उसकी यादें हमारे अंदर एक खुशनुमा माहौल पैदा कर देती है. यह भी सच है की पुराने लोग सदैव अपने ज़माने के सस्तेपन, भाईचारे और स्वतंत्रता का गुणगान करते नजर आते हैं और भविष्य की पीढ़ी को सामाजिक रूप से संस्कारहीन बनता हुआ पाते हैं. लेकिन हम संस्कार, धर्म, आदर्श के विवाद में ना पड़ कर सिर्फ ईक्कीसवीं सदी के डेढ़ दशक में आए बदलाव की बात करेंगे.


जाहिर है चलते रहने का नाम ही जीवन है. इसी चलते रहने के कारण पानी एक जगह नहीं ठहरता तो जीवन और विकास कैसे ठहर सकता है. यह भी बिना किसी नियम में बंधे अनवरत रूप से चलता रहता है. इन पहले १५ बरसों में कई बदलाव ऐसे हुए हैं जिन्होंने हमारे काम, मनोरंजन, खेल-कूद, पढ़ने-लिखने, खाने-पीने और रोज के कामकाज को बदल कर रख दिया है. जो चीजें कभी हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा हुआ करती थीं, वो एक-एक करके हाशिए पर जाती गयीं और उनकी जगह नई चीजों ने ले ली.

यदि थोडा ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे की हमने क्या पाया है और क्या खो दिया है. आइए, याद करते हैं उन सहूलियतों को, जिन्होंने सदी के शुरूआती १५ सालों में हमारी जिंदगी बदल दी और जिनको हमने भुला दिया.


21वीं सदी की शुरूआत तक हर गली-मोहल्ले में एसटीडी-पीसीओ बूथ की भरमार थी. हाथों में जब से मोबाइल फोन आया, पीसीओ बूथ छोड़िए, टेलीफोन की घंटी बजना भी कम हो गई. टेलीग्राम बंद हो गया और इंटरनेट के आने से फैक्स भेजने का जमाना भी जाता रहा. अब यह मशीन सिर्फ सरकारी दफ्तरों में अफसरों की टेबल पर रखे मिलते है. फ्लॉपी और पेजर, कार्डलेस भी गुजरे जमाने की बात हो गयी है.


स्मार्टफ़ोन के कारण अब हर हाथ में कैमरे हैं और ग्रुपी और सेल्फी का चलन जोरो पर है. चंद साल पहले के दिन याद कीजिए. जब कहीं बाहर या शादी-ब्याह में जाना होता था तो कैमरे और उसके रोल लेकर जाते थे. अब डिजिटल कैमरे चलन में है, जिसमें रोल की जरूरत नहीं. डिजिटल कैमरे को अब स्मार्ट फोन पटकनी दे रहे हैं. स्मार्टफ़ोन से दुनिया लोगों की मुट्ठी में आ गयी है. नेट यूजर्स को कैफे की जरूरत नहीं होती. बिजनेस, स्टडी या इंटरटेनमेंट, हर काम आसान. खर्चा भी पहले से कम. स्मार्टफ़ोन और टेबलेट के कारण कंप्यूटर और लैपटॉप का प्रयोग भी कम हो गया है और लोग 24 घंटे ऑनलाइन रहने लगे हैं.

याद होगा कॉलेज में कम्प्यूटर लैब में जाने से पहले जूते-चप्पल बाहर निकालते थे. अब ऐसा नहीं. लगता है लैपटॉप को देखकर कम्प्यूटर भी मेन फ्रैंडली हो गया. एक और खास सुविधा मिली. वह ऑटोमेटिक ट्रेलर मशीन  (एटीएम). पहले चंद रूपये निकलवाने के लिए बैंकों की लाइन में खड़े रहना पड़ता था और दूर यात्रा में जाने पर नोटों की गड्डियां साथ ले जानी पड़ती थी जिससे जेब काटने और रास्ते में लूट लेने की घटना जोरो पर थी. पर अब ऑनलाइन ट्रान्सफर, एटीएम ने लोगों को लुटने और चोरी होने से भी बचा लिया. अब यह सहूलियत है की उतना पैसा निकालिए जितने की आपको तुरंत जरुरत है.


पहले गाने सुनने के लिए ऑडियो कैसेट और कैसेट प्लेयर, ट्रांजिस्टर और मूवी देखने के लिए वीसीआर की जरुरत होती थी. बच्चे आउटडोर गेम ज्यादा खेलते थे. वीडियो गेम बहुत कम बच्चे खेलते थे. परन्तु अब कंप्यूटर और लैपटॉप पर बच्चे गेम ही खेलते रहते हैं. वीसीआर और कैसेट प्लेयर का स्थान डीवीडी प्लेयर और डीवीडी प्लेयर का स्थान कंप्यूटर ने ले लिया है. मूवी, गाने और गेम भी ऑनलाइन खेले जाने लगे हैं. बच्चे अब आउटडोर गेम कम खेलते हैं और उनकी किताबों और मास्टर का स्थान ऑनलाइन एजुकेशन ने ले लिया है.


किसान भी बदल गया है दो बैल और हल गुजरे ज़माने की बात हो गए हैं. अब कृषि का लगभग सारा काम मशीनों के किया जाने लगा है. कुएं रहें नहीं उनका स्थान हैंडपंप ने ले लिया है और जहाँ कुएं हैं वहाँ मोटर से पानी निकाला जाता है. वह साल में दो से अधिक फसले लेने लगा हैं और देश-दुनिया की खबर रखने लगा है. विकसित शहरों के किनारे बसे गाँव भी शहर में तब्दील हो गए हैं. रोड, बिजली और संचार का जाल सब जगह फ़ैल गया है. यहाँ भी घर-घर शौचालय बन रहे हैं और खाना एलपीजी या गोबर गैस से बनने लगा है. महिलाओं ने कुटना-पीसना भी बंद कर दिया है.


अब शादियां बैक्वेंट हॉल, कम्युनिटी और होटल सेंटर में होती है. वेडिंग प्लानर आपकी ड्रेस, मंडप, टेंट, मीनू, आपकी जेब के हिसाब से, पहले से ही प्लान कर देते हैं. लोग सिर्फ खाने या चंद मिनटों के लिए फोर्मलिटी अदा करने के लिए शादियों में जाते हैं और खाकर तुरंत ही लौट आते हैं.


सुपर बाजार ने जीवनशैली को बदला है. शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, मल्टीप्लेक्स में एक छत के नीचे शॉपिंग सुलभ हुई है. टिक्की और समोसे की पार्टियों से अब दोस्त खुश नहीं होते. पिज्जा, डोसा, चाऊमीन, हॉटडॉग जैसे कितने ही व्यंजन है, जो पार्टियों में स्टेटस सिंबल है. इनका क्रेज इस कदर बढ़ा कि विदेशी कंपनियों ने छोटे शहरों में अपने प्रतिष्ठान खोल दिए.


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