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भाषा शब्दों से पूर्ण होती है और हर शब्द की व्यंजना एक विशेष भाव की अभिव्यक्ति करती है. पर कुछ शब्द ज्यादा घिसे जाने से अपने मूल स्वरुप को छोड़ने लगते हैं और कुछ तो सम्पूर्ण रूप से परिवर्तित हो जाते हैं. मंत्री के पुरातन रूप और वर्तमान रूप में सम्पूर्ण परिवर्तन लक्षित है और सत्य, अहिंसा जैसे ज्यादा रगड़े जाने वाले शब्द अपना मूल स्वरुप खोते जा रहे हैं. यकीं नहीं आता तो आप किसी से कह के देख लें कि आप तो सत्यवादी हरिश्चंद्र हैं तो वह इसका विपरीतार्थक रूप ही लेगा. यदि आप यह शब्द किसी नेता के लिए कहें तो जनता इसे भद्दी गाली के रूप में लेगी.
भाषा शब्दों से पूर्ण होती है और हर शब्द की व्यंजना एक विशेष भाव की अभिव्यक्ति करती है. पर कुछ शब्द ज्यादा घिसे जाने से अपने मूल स्वरुप को छोड़ने लगते हैं और कुछ तो सम्पूर्ण रूप से परिवर्तित हो जाते हैं. मंत्री के पुरातन रूप और वर्तमान रूप में सम्पूर्ण परिवर्तन लक्षित है और सत्य, अहिंसा जैसे ज्यादा रगड़े जाने वाले शब्द अपना मूल स्वरुप खोते जा रहे हैं. यकीं नहीं आता तो आप किसी से कह के देख लें कि आप तो सत्यवादी हरिश्चंद्र हैं तो वह इसका विपरीतार्थक रूप ही लेगा. यदि आप यह शब्द किसी नेता के लिए कहें तो जनता इसे भद्दी गाली के रूप में लेगी.
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