Wednesday 22 June 2016

सलमान खान का वक्तव्य

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सलमान खान का वक्तव्य कल से मीडिया की सुर्खी बना हुआ है. यत्र-तत्र-सर्वत्र निंदा हो रही है. चपल ताड़ित भांति महिला आयोग हरकत में आ गया. घर पर रोज नारी का अपमान करने वाले भी आगे आ के लम्बी-लम्बी छोड़ रहे हैं. 
सलमान आइकन हैं पर हैं तो पुरुष. वह भी दबंग पुरुष. दबंग पुरुष दंभी हो जाता है और वह सिर्फ सीधे ही देख पाता है आजू-बाजू और पीठ पीछे न वह नहीं देख पाता. चाहे थप्पर केस हो या हिरन केस हो या हिट रन केस या अरिजीत प्रकरण. फल लगने के बाद वृक्ष को झुकना चाहिए न की और टाइट हो जाना चाहिए. 
आदमी क्या कहता है इसका उसकी सोच से गहरा तादात्म होता है. कई बार अन्दर की उथल-पुथल भी न चाहते हुए भी शब्दों द्वारा बयाँ कर दी जाती है. इंट्रोगेसन में पूछ-ताछ इसी के तहत की जाती है. प्रत्येक शब्द का महत्त्व है और एक शब्द भी इंसान का जीवन बदल देता है-‘सेकुलर’-शब्द ने आडवाणी जी को कितना परेशान किया यह सभी लोग जानते हैं. 
निजी जीवन में लोग अपने परिवेश और समूह में कई शब्दों का व्यवहार करते हैं जो सामाजिक जीवन में असंगत और अप्रिय है. जो भाषा हम दोस्तों के व्यवहरित करते हैं वह हम घर में भी नहीं करते. इसका मतलब यह कदापी नहीं की हम अपने दोस्त को कम चाहते हैं या हममे किसी प्रकार का वैरभाव है. 
अप्रिय शब्द झल्लाहट, गुस्से और उत्तेजना में लगभग सभी के निकल आते हैं. चाहे वह कोई हो. यह शब्द इसीलिए निकलते हैं की हम जिस समाज में बड़े हुए, जिए से हमारे भीतर बहुत गहरे तक बैठ जाता है और तनिक भी दिमाग का कनेक्शन लूज हुआ तो स्वतः अनैक्छिक क्रिया के रूप में निकल आता है. 
यह भी सत्य है की शब्द और उसके अर्थ की प्रतिध्वनी का मानस से गहरा तादात्म्य होता है तभी सलीम जी ने भी माफ़ी मांग ली. 
अब आते हैं सलमान प्रकरण की हकीकत पर जैसा की बीबीसी के सुप्रिया सोगले के हवाले से ज्ञात हुआ की जैसे ही सलमान के मुहं से निकला कि वो किसी 'रेप विक्टिम' की तरह महसूस कर रहे थे तो सभी लोग असहज हो गए और सलमान भी बोलते-बोलते रुक गए, वो महसूस कर सकते थे कि वो कुछ ग़लत कह गए हैं. उन्होंने तुरंत कहा, “नहीं, मुझे यह नहीं कहना चाहिए था, मैं कहना चाह रहा था कि मैं चल नहीं पा रहा था." सलमान ने तत्क्षण अपने शब्द वापस ले लिया. 
प्रिंट इंटरव्यू का एक नियम होता है कि अगर आर्टिस्ट यह कहे कि वो किसी बात को नहीं कहना चाहता या उसे यह नहीं कहना चाहिए था तो उस बात को लिया नहीं जाता लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. 
मीडिया ने अपनी जरुरत के हिसाब से बात को हवा दी और उसे भुनाने में लग गए. हर तरफ योग और सलमान ही छाए रहे. मीडिया को भी थोडा नियंत्रित होकर चलना चाहिए और मात्र समाचार या न्यूज के लिए अतिरंजना से बचना चाहिए.
हमें यह भी समझना चाहिए की ‘रेप’ सिर्फ एक स्थिति या घटना नहीं है. यह अत्यंत कष्टकारी वेदना है. यह शारीरिक यातना के साथ मानसिक आघात भी है जिसके निशान शीघ्र नहीं मिटते जीवनभर पीछा करते हैं. इसे आप इस तरह समझ सकते हैं जैसे कोई अनजान जब किसी बस में, ट्रेन में आपके शरीर से असंगत तरीके से टच हो जाय जो आप कितने आग-बबूला हो जाते हो. झगड़े की नौबत तक आ जाती है. आप घंटो परेशान हो जाते हो, आपकी बुद्धि स्थिर नहीं रहती जबकि यह सिर्फ टच मात्र था. इतने मात्र से ही हम सिहर जाते हैं. तो उस स्थिति की व्याकुलता, कष्ट, आघात हमारे लिए अकल्पनीय है.

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