Monday 30 March 2015

तबाही के बाद होगी मंहगाई की मार

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बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से उत्तर प्रदेश, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, मध्यप्रदेश, राजस्थान समेत देश के अधिकांश हिस्सों में किसानों के मन-तन और खेत बेहाल हैं. कृषि मंत्रालय की माने तो पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में 50 लाख हेक्टेयर भूमि में खड़ी फसल बर्बाद हुई है. गेहूं अनुसंधान निदेशालय, करनाल के मुताबिक देशभर में गेहूं की करीब 20 प्रतिशत फसल को नुकसान हुआ है. फसलों की बर्बादी के आंकलन के लिए राज्यों ने सर्वे शुरू कर दिया है. प्रारंभिक अनुमान के अनुसार राज्यों में सर्वाधिक असर गेहूं, चना, सरसों और आलू की फसल को पहुंचा है. सिर्फ उत्तर भारत की बात की जाए तो यहां बारिश से आलू, सरसों और गेहूं की फसल सर्वाधिक प्रभावित हुई है. पंजाब में आलू का उत्पादन भी 50 फीसदी प्रभावित होने की खबरें हैं. वहीं हरियाणा में गेहूं की फसल को 25 फीसदी, सरसों की फसल को 20 फीसदी और जौ को बड़ा नुकसान पहुंचा है. महाराष्ट्र में मराठवाड़ा, खानदेश और विदर्भ में गेहूं, प्याज और आम को नुकसान पहुंचा है. इसके अलावा गुजरात के सौराष्ट्र और उत्तर गुजरात में कैरी एवं जीरे की अधिकांश फसल खराब हो गई है. इसके अलावा आलू, प्याज, सौंफ, धनिया और इसबगोल की फसलें भी बर्बाद हुईं.

कई राज्यों के सैकड़ों गांवों की फसल एक साथ खत्म हो गई. इतने बड़े पैमाने पर हुई फसल बर्बादी के बाद कई क्षेत्रों के किसान सीधे सड़क पर आ गये हैं. किसान चौपट फसलों की भरपाई और कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं. कुछ राज्य सरकारों ने किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए मुआवजे की घोषणा तो की है, लेकिन यह मुआवजा उन तक कब और कितना पहुंचेगा, यह सवाल ही है. अभी तो राज्य सरकारें केंद्र से ही विशेष पैकेज की आस लगाए बैठी हैं. उल्टे, प्रक्रिया भी ऐसी है कि जिन राज्यों में फसलों के नुकसान की वजह से किसानों की सदमे में मौत हो गई, उनके परिवार सरकार और प्रशासन की नजर में मुआवजे के हकदार तक नहीं. अलबत्ता किसान की खुदकुशी पर सरकार मुआवजा बांटती रही है.

इस कड़ी में झांसी के गरौठा के ग्राम नगरा की महिला किसान दुलैया का किस्सा आता है. उसकी पोती की शादी 7 मई को निर्धारित है. दुलैया दो बेटे और सात एकड़ की खेती के जरिये ही जी रही थी. इस बार दुलैया ने मटर बोई थी जो बारिश में तबाह हो गई. फसल की बर्बादी का सदमा वह बर्दाश्त नहीं कर सकी और 16 मार्च को उसकी मौत हो गई. परन्तु अब तक उसके परिवार को कोई सरकारी-प्रशासनिक सहायता नहीं मिली है. ऐसी ही कितनी असहाय दुलैया देश के कोने-कोने में मर रही है जिनका समाचार तक किसी को नहीं मिल रहा है.

वैसे तो उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों की मौत के मामले में तत्काल पांच-पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है. फसलों की तबाही को लेकर दो सौ करोड़ रुपये का प्रावधान भी यूपी सरकार ने किया है लेकिन प्रदेश के जिन इलाकों में किसानों की मौत हुई है, वहां अब तक प्रशासनिक अमला मदद करने या हाल जानने तक नहीं पहुंच सका है. किसानों की यह समस्याएं उस दिन भी पीएम के सामने थीं, जब वह मन की बात कर रहे थें, लेकिन वह इस विषय पर मौन साधे रहें.

इस बिगड़ते और अनियमित मौसम का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है. सब्जियों के दामों पर तो इसका असर दिखने भी लगा है. इससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार भी धीमी पड़ सकती है. जाहिरा तौर पर इससे मोदी सरकार की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिशों को झटका लग सकता है क्योंकि बीते साल लोकसभा चुनाव के दौरान महंगाई बड़ा मुद्दा थी.

भारत सहित पूरी दुनिया में पूंजीवाद का प्रभाव बढ़ रहा है. लेकिन किसान और किसानी बेहद खस्ता हालत में है. आज कोई भी किसान खेती नहीं करना चाहता. जो लोग किसानी कर भी रहे हैं, उनमें अधिकांश बर्बादी के कगार पर हैं. ऐसे में भारतीय कृषि एक बड़े संकट की तरफ बढ़ रही है, जिसकी तरफ सरकारों को समय रहते तत्काल ध्यान देना पड़ेगा.


कुल मिलाकर बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से देश भर के किसानों को जो भारी नुकसान हुआ है, उसके लिए तत्काल केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर किसानों की मदद करनी चाहिए. स्थानीय स्तर पर उनके लिए कुछ वैकल्पिक प्रबंध किये जाने की जरूरत है. किसान इस देश के विकास की सबसे मजबूत और महत्वपूर्ण कड़ी है और अगर किसान कमजोर और असहाय होगा तो इसका सीधा असर देश पर पड़ेगा.


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